तारीखे इस्लाम

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जरत अबूबक्र सिद्दीक रजि.
(34वीं किश्त)
लेकिन हजरत अबूबक्र रजि. का हुक्म था कि सरकार सल्ल. ने उसामा को सेनापति बनाकर शाम देश पर हमले के लिए हुक्म दिया था, मैं किसी तरह इसय हुक्म के खिलाफ नहीं चल सकता। मैें सबसे पहला यही काम करूंगा, चाहे मैं अकेला रह जाऊं और मुझे अपनी जान ही क्यों न देनी पडे।
चुनांचे फौज ने कूच किया। हजरत अबूबक्र उसामा को हिदायतें देने के लिए कुछ दूर उनके साथ तश्रीफ ले गये। वह घोडे पर सवार थे,और खलीफा उनके साथ साथ पैदल चल रहे थे।
सेनापति ने अर्ज किया कि या तो आप घोडे पर सवार हो जाएं या मुझे नीचे उतरने की इजाजत दें।
हजरत अबूबक्र सिद्दीक रजि. ने फरमाया, आप बिल्कुल घाड पर से नहीं उतर सकते और न ही मैं सवार होने को तैयार हूं। क्या आप नहीं चाहते कि मेरे कदम भी खुदा की राह में घूल से सनें, क्या आप को याद नहीं कि गाजी (योद्धा) का हर कदम खुदा को भला मालूम होता है और गाजी दोजख में नहीं जाएंगे।
आपने जो हिदायतें दीं, वे इस तरह हैं-
1. किसी काम में खियानत न करना,
2. गनीमत के माल में से कुछ न लेना,
3. किसी समझौते के खिलाफ काम न करना,
4. दुश्मन की लाशों की बेइज्जती न करना,
5. फलदार पेडों को न काटना और न उसको आग लगाना।,
6. किसी बच्चे को कत्ल न करना, न किसी औरत पर हमला करना और न किसी बूढे आदमी को कत्ल करना।
7. किसी बच्चे को किसी हालत में भी उनकी मां से जुदा न करना।
8. बकरियां, भेडें, गायें, ऊंट और घोडों को बर्बाद न करना।
9. यहूदियों और ईसाईयों के राहिबों और पादरियो पर हमला न करना और न उन लोगों पर हमला करना, जो तुम पर हमला न करें।
10. लोगों के मजहब में जबरदस्ती दखल न देना और कतई तौर पर किसी को जबरदस्ती मुसलमान बनाने की कोशिश न करना।
हजरत अबूबक्र रजि. ये हिदायतें देकर फिर वापस मदीना लौट आये।
उसामा रजि. की फौज जिन रास्तों से गुजरी, वहां के लोग रौब में आ गये और उनको यकीन हो गया कि हुकूमत बेशक ताकतवर है, वरना इस खतरे की हालत में ऐसी मुहिम का ख्याल बेकार की बात है। चुनांचे वे डर कर सीधे रास्ते पर आ गये।
बगावत कुचल दी गयी
हुजूर सल्ल. की वफात के बादबागियों ने यह समझ लिया था कि शायद इस्लाम की ताकत टूट चुकी है, इसलिए जगह-जगह उन्होंने सर उठाने शुरू कर दिये थे। चुनांचे हजरत अबूबक्र सिद्दीक ने इन बगावतों को कुचलने के लिए ग्यारह बहादुर सरदारों की मातहती में अलग-अलग टुकडियां रवाना की गयीं, जैसे-
1. खालिद बिन वलीद को हुक्म था कि तलैहा को हराने के बाद मालिक बिन नुवैरा का सर कुचलने के लिए जाएं।
2. इक्रिमा को मुसैलमा को काबू में करने के लिए यमामा भेजा।
3. शुरहवील बिन हुस्ना को इक्रिमा की मदद के लिए भेजा गया ओर हुक्म हुआ कि वहां से फारिग होकर कबीला कुफाआ को पस्त करें और उसके बाद कुन्दा पर हमला करें।
4.खालिद बिन सईद को मशारिके शाम की तरफ भेजा।
5. अस्र बिन आस को कुजाआ, वदीआ और हारिस के दमन के लिए भेजा।
6. हुजैफा बिन महज, वबा के लोगों को पस्त करने चले।
7. मुहाजिर बिन अबी उमैया, अस्वद के दमन के लिए गये।
8. अर्फअजा बिन हुरैमसा, मुहरा के बाशिंदों का सर कुचलने के लिए भेजे गये।
9. अला बिन हजरमी बहरैन गये।
10. तुरैफा बिन मुक्रिन यमन की तरफ चले।
11. इस शानदार स्कीम से कोई जगह ऐसी न रही, जहां फित्ने या फसाद का खतरा रहता। खलीफा ने मदीना वापस आकर एक फरमान जारी किया कि दीन से हर फिरने वाला और हर बागी जहां कहीं भी वह है, अगर वह तौबा कर ले, तो उसकी गलती माफ कर दी जाएगी, लेकिन जो लोग हठ पर कायम रहेंगे, उन पर हमला करके उनको तलवार के घाट उतार दिया जाएगा। और उनके बच्चे और औरतें कैद कर ली जाएंगी।
इसके बाद एक साल के अन्दर ही पूरे मुल्क में बगावत कुचल दी गयी और चारों तरफ अम्न व अमान कायम हो गया।
इराक पर कबजा
बारहवीं हिजरी तक पहुंचते-पहुंचते जब पूरे मुल्क में अमन कायम हो गया, तो खलीफा का ध्यान सरहदी इलाकों और दूसरे इलाकों की सरगर्मियों की ओर भी गया।
हजरत खालिद रजि. और मुस्ना बिन हारिसा के दोनों दस्ते एक होकर आगे बढे। अभी यह फौज इराक की सरहद में दाखिल हो गई थी कि आस-पास की छोटी-छोटी रियासतें रौब में आकर खुद ही समझौते पर तैयार हो गयीं।
फिर इराक के हाकिम को इस्लाम की दावत पेश की गयी। वह बहु त नाराज हुआ और लडने-मरने पर तैयार हो गया। मुकाबला हुआ और हुमुर्ज की फौज हार कर भाग खडी हुई।
ईरान के बादशाह को जब इस पसपाई का हाल मालूम हुआ तो उसने बहुत पेच व ताब खाया और अपने एक मशहूर जर्नल अंदाजजर की सरदारी में फिर एक भारी फौज भेजी, फिर मुकाबला हुआ और दुश्मन हार गया।
इस तरह जीतते हुए हजरत खालिद रजि. अपनी फौज के साथ आगे बढते चले गये, यहां तक कि फरात नदी के किनारे अपना पडाव डाल दिया। दुश्मन भी खामोश न था, उसकी फौजें मुसलमानों को खत्म कर देने का इरादा किए पडी थीं। जब लडाई हुई तो दुश्मन ही की हार का मुंह देखना पडा।
वहां से जीत हासिल करने के बाद हजरत खालिद रजि. अपनी फौज के साथ आगे, आस-पास के कबीलों से समझौता करते हुए यर्मूक की तरफ बढे। वहां सख्त मुकाबला हुआ। इतनी घमासान की लडाई हुई कि तीन हजार मुसलमान शहीद हुए। नाभी सहाबी भी शहीद हो गये, फिर जीत मुसलमानों के ही हाथ रही।
इस तरह शाम मुल्क पर मुसलमानों का कब्जा हो गया।