गजल गायकी को इबादत मानते हैं राजकुमार रिजवी

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राजकुमार रिजवी और इन्द्राणी रिजवी के गज़ल गायन का अनूठा एवं मर्मस्पर्शाी अन्दाज है जो दुनिया भर में गजल प्रेमियों द्वारा सराहा जाता है। राजस्थान के संगीत घराने में जन्मे राजकुमार रिज़वी प्रतिष्ठित गज़ल गायक मेंहदी हसन के परिवार से हैं। वे ही उनकी प्रेरणा भी रहे। अपने पिता नूर मोहम्मद से आपने संगीत की शिक्षा प्राप्त की जो कलावन्त घराने के कलाकार थे। बाद में उन्हें उस्ताद जमालउद्दीन भारतीय का भी मार्गदर्शन प्राप्त हुआ जो प्रख्यात सितार वादक पण्डित रविशंकर के शागिर्द रहे। सुश्री इन्द्राणी रिज़वी, राजकुमार रिज़वी की पत्नी हैं, उनके साथ ज्यादातर संगीत महफिलों में आपने गाया है। सुश्री इन्द्राणी परम्परागत बंगला परिवार में जन्मीं और गायन का मार्गदर्शन मूर्धन्य शास्त्रीय गायिका सुश्री किशोरी अमोणकर से प्राप्त ण्किया। देश-दुनिया में आपके गायन के मुरीद हैं।

प्र. आपने गायकी कब से शुरू की?
उ. मैं एक गायक परिवार से संबंध रखता हूँ, मेरे पिता जाने-माने उस्ताद थे। और उस्तादों के बच्चे होना बड़े फख्र की बात है।
मैं रेगिस्तान को रहने वाला हूँ और मैंने अपने वालिद से तालीम हासिल की। मैं ओशो का भी शागिर्द हूँ, क्योंकि मैंं ऐसा $गज़ल सिंगर हूँ जिसके बारे में ओशो ने कहा कि इस आवा$ज को इधर लेकर आओ।
प्र. आप किस प्रकार की गजलें गाना पसंद करते हैं?
उ. मैं आमतौर पर ऐसी गजल गाता हूँ जो मैंने उस्तादों से सीखी है और जिसके अन्दर गायकी होती है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि मेरी ये गजल लोगों के समझ में भी नहीं आये।
प्र. इंद्राणी जी से आपकी कब और कैसे मुलाकात हुई?
उ. इन्द्राणी जी से मेरी पहली मुलाकात रशिया में हुई। वहां पर मैं यूथ डेलीगेशन के सदस्य के रूप में गया था और ये भी अपने कॉलेज की ओर से गई थीं। हमारी मुलाकात के बाद चार साल तक बड़ा जद्दोजहद का मामला रहा। फिर हमारी शादी हैदराबाद में हुई। खालिद यार साहब ने हमारी शादी कराने में अहम्ï रोल निभाया, शादी कराने के लिए वो दरवा$जे पर बन्दूक लेकर बैठे रहे।
प्र. आप दोनों ने गाना कब से शुरू किया?
उ. शादी के बाद हम लोग बम्बई आ गये और उसके बाद हम लोगों ने वहां बहुत संघर्ष किया हम लोग एचएमवी के कार्यालय भी गये, पर उन लोगों ने हमें मौका तो नहीं दिया बल्कि हमसे कहा कि पहले आप अपना नाम पैदा कीजिए फिर आईये।
इसके बाद हम संगीतकार जयदेव साहब से मिले। उन्होंने लैला मजनू में एक गाना गवाया। जब वो रिकार्ड एचएमवी के पास पहुंचा तो उन्होंने कहा कि इसको बुलाओ। इसके बाद एचएमवी ने हमारी गजलों के कई रिकॉर्ड निकाले।
प्र. अभी तक आपके कौन-कौन से रिकॉर्ड आ चुके हैं?
उ. एचएमवी रिकॉर्ड कम्पनी से हमारे कई रिकार्डस निकले हैं उनमें खास हैं, सांग्स यू विल लव, महफिले यारां, परछाईयां, ओशो से भी एक कैसेट निकला है।
प्र. अभी तक आप कहां-कहां कार्यक्रम प्रस्तुत कर चुके हैं?
उ. अरब मुल्कों में दुबई, जद्दा, कुवैत, लंदन कई बार जा चुके हैं, अमरीका में तो हम रहते ही हैं वहां के सभी शहरों में हमने अपने कार्यक्रम प्रस्तुत किये हैं। दुनिया के अधिकांश बड़े शहरों में हम कार्यक्रम प्रस्तुत कर चुके हैं।
प्र. आप भारत छोड़कर अमरीका क्यों चले गये?
उ. ये बहुत कड़वी बात रही है। मेरे साथ तास्सुब परस्ती बहुत हुई। हमारे कैसेट्ïस निकले तो उनको नीचे दबा दिया गया और उनके वालों के कैसेट निकले तो बढ़ावा दिया जाता था। अमरीका में इस प्रकार का कोई भेदभाव नहीं किया जाता। इसी कारण हम लोग अमेरिका चले गये थे।
प्र. राजकुमार नाम आपका वास्तविक नाम है या आपने उसे गाने के लिये रखा हैï?
उ. ये नाम मैंने गायकी के लिये रखा। हालांकि हमारे क्षेत्र में इसी प्रकार के नाम होते हैं। (दोबारा सवाल करने पर इंद्राणी बोलीं कि बचपन में इनके पिता इनको रजनी बोलते थे और इनका पेट नेम रज्जू था।) लेकिन मेरा वास्तविक नाम अब्दुल रज़्$जाक़ है। मेरे पिता मुझे राजकुमार ही कहते थे और बाद वही मेरा नाम हो गया।
प्र. आपके परिवार में और कौन-कौन गायक थे?
उ. मेरे नाना हुसैन बख्श खां साहब बहुत नामी उस्ताद थे। हमारे इलाके में हम लोगों को कबीर पंथी कहा जाता था। हम सभी धर्मों को समान रूप से मानते हैं। मैं जब पहली बार पाकिस्तान गाने गया तो वहां जब मेरा कार्यक्रम पेश हुआ तो अगले दिन वहां के अखबारों ने यह छापा कि पाकिस्तानी टेलिविजन पर पहली बार हिन्दू शिया ने गाना गाया। उनको मेरे राजकुमार नाम से शक हो रहा था कि मैं हिन्दू हूं।
प्र. मेंहदी हसन साहब से आपका क्या रिश्ता है?
उ. मेंहदी हसन भी राजस्थान के हैं और हमारे रिश्तेदार हैं, मेरे रिश्ते के चचा लगते हैं।
प्र. गजल गायकी में आपके आदर्श कौन हैं?
उ. मेंहदी हसन साहब ही मेरे आदर्श हैं और उनसे अच्छा गजल गायक अभी तक मेरे अनुसार कोई नहीं हुआ। वैसे बे$गम अख़्तर, तलत मेहमूद साहब भी बहुत अच्छा गाते थे।
प्र. आपके पसंदीदा शायर कौन से हैं?
उ. आजकल मैं अहमद फरा$ज को पढ़ता हूँ। शेरी भोपाली, बशीर बद्र, जॉ निसार अख्तर, नासिर का$जमीं, मीर त$की मीर जैसे गम्भीर और बामायने शायरी करने वालों की शायरी को मैं पढ़ता हूँ।
प्र. आपके परिवार में आपकी बेटियाँ भी गाती हैं तो इन्हें आप लेकर आये हैं या ये स्वयं ही गजलें पढ़ती हैं?
उ. मैंने इनको पढ़़ा लिखा दिया और उनकी मर्जी के मुताबिक़ ही इनको गाने की तालीम दी है। शास्त्रीय संगीत की शिक्षा दी। और इनकीे आवा$ज भी गाने के लिए बहुत अच्छी और दिल पर असर करने वाली आवाज़ है।
प्र. इंद्राणी जी आपने हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मों को बहुत करीब से देखा है इन धर्मों की कौन सी बात आपको सबसे अच्छी लगी?
उ. दोनों धर्मोँ की एक ही बात मुझे सबसे अच्छी लगी वो है मोहब्बत। दोनों ही धर्म मोहब्बत का भाई-चारे का संदेश देते हैं।
पांव $जख़्मीं हों तो, आंखों में चमक आती है।
उसी रस्ते से गु$जरता हूँ, जो दुश्वार लगे॥
साक्षात्कारकर्ता – रईसा मलिक