तारीखे इस्लाम

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हजरत अबूबक्र सिद्दीक रजि.
(35वीं किश्त)
जिन्दगी के आखिरी दिन
सन् 13 हि. के जुमादलउख्रा महीने के शुरू में हजरत अबूबक्र सिद्दीक रजि. बुखार में मुब्तला हुए। पन्द्रह दिन में बुखार में तेजी पैदा हो गयी। जब आप को यकीन हो गया कि आखिरी वक्त आ पहुंचा है, तो आपने सबसे पहले हजरत अब्दुर्रहमान बिन औफ रजि. से आप ने फरमाया कि उमर के बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है? उन्होंने कहा कि उमर रजि. के मिजाज में सख्ती है। आपने फरमाया, उमर की सख्ती की वजह सिर्फ यह है कि मैं नर्म तबियत रखता था। मैंने खुद अन्दाजा कर लिया है कि जिस मामले में मैं नर्मी अपनाता था, उसमें उमर रजि. की राय सख्ती लिए हुए होती थी, लेकिन जिस मामले में मैंने सख्ती से काम लिया,, उनमें उमर रजि. हमेशा नर्मी का पहलू अपनाते थे। मेरा ख्याल है कि खिलाफत उन को जरूर नर्मदिल और मीतदिल बना देगी।
इसके बाद आप ने हजरत उस्मान रजि. को बुलाकर यही सवाल किया। उन्होने कहा कि उमर रजि का अन्दर उनके बाहर से अच्छा है।
फिर आप ने हजरत अली कर्रमल्लाहु वज्हहु को बुलाकर यही सवाल किया। उन्होंने भी यही जवाब दिया।
इसके बाद हजरत तलहा रजि. तश्रीफ लाए, उनसे भी मश्विरा किया, फिर आप ने हजरत उस्मान गनी रजि. को बुलाकर वसीयत नामा लिखने का हुक्म दिया, जो इस तरह तैयार हुआ-
यह वह अह्द है, जो अबूबक्र खलीफा-ए-रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उस वक्त किया है, जबकि उसका आखिरी वक्त दुनिया का और अव्वल वक्त आखिरत का है। ऐसी हालत में काफिर भी ईमान लाता और फाजिर भी यकीन ले आता है। मैंने तुम लोगों पर उमर बिन खत्ताब रजि. को मुकर्रर किया है और मैंने तुम लोगों की भलाई और बेहतरी में कोताही नहीं की, पस अगर उमर रजि. ने सब्र व अक्ल से काम लिया, तो यह मेरी उसके बारे में जानकारी थी और अगर बुराई की तो, मुझको गैब का इल्म नहीं है और मैंने तो बेहतरी और भलाई का इरादा किया है और हर आदमी को अपने कामों का नतीजा भुगतना है, और जिन्होंने जुल्म किया है, बहुत जल्द देख लेंगे कि किस पहलू पर फेरे जाते हैं।
जब यह तहरीर लिखी जा चुकी, तो आप ने हुक्म दिया कि लोगों को पढ कर सुना दो। फिर उसी बीमारी की हालत में खुद भी बाहर आए और मज्मे से बोले कि मैंने अपने किसी अजीज रिश्तेदार को खलीफा नहीं बनाया है, न सिर्फ मैंने अपनी राय से ऐसा किया है, बल्कि लोगों से राय लेकर खलीफा बनाया है, तो क्या तुम लोग उस शख्स के खलीफा होने पर रजामंद हो जिसको मैंने तुम्हारे लिए चुना है? यह सुनकर लोगों ने कहा कि हम आपके चुनाव और आपकी तज्वीज को पसंद करते हैं, फिर हजरत सिद्दीक अक्बर रजि. ने फरमाया कि तुम को चाहिए कि उमर फारूक रजि. का कहना सुनो और उसकी इत्ताअत करो, सबने इताअत का इकरार किया। इसके बाद हजरत उमर फारूक रजि. से बोले-
ऐ उमर! मैंने तुम को अस्हाबे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर अपना नायब बनाया है, अल्लाह से खुले-छिपे में डरते रहना, ऐ उमर! अल्लाह के कुछ हक है, जो रात से मुताल्लिक हैं, उनको वह दिन में नहीं कुबूल करेगा, ऐसे ही कुछ हक दिन से मुताल्लिक हैं, जिनको वह रात में कुबूल नहीं करेगा। अल्लाह तआला नफ्लों को कुबूल नहीं करता, जब तक कि फर्ज न अदा कर दिए जाएं।
ऐ उमर! जिनके नेक अमल कियामत में वजनी होंगे, वहां कामियाब होंगे और जिनके नेक अमल कम होंगे, वही मुसीबत में फंसेंगे ऐ उमर! फलाह व निजात की राहें कुरआन मजीद पर अमल करने और हक की पैरवी से मयस्सर होती है।…………ऐ उमर! तुम जब मेरी इन वसीयतों पर अमल करोगे, तो मुझे गोया अपने पास बैठा हुआ पाओगे।‘‘
यह तहरीर और वसीयत वगैरह की कार्रवाई 22 जुमादल उख्रा सन् 13 हि. को लिखी गयी और उसी दिन शाम को मग्रिब बाद तिरसठ साल की उम्र में आप का इंतिकाल हुआ और इशा से पहले आप दफ्न कर दिए गए।
इन्नालिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन