नवाब सिंकदर जहां बेगम

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सदरनशीनी
क्योंकि सिंकदर जहां बेगम ने अच्छी तदबीर से काम लिया और मुल्क के इंतजाम की उम्दा मिसाल कायम की। उनके काबलियत और वफादारी का सिक्का हुकूमते बरतानिया के दिल में बैठ चुका था। लेकिन शाहजहां बेगम का रईसा होना इससे पहले तय हो चुका था, इस बिना पर इनकी सदरनशीनी के लिए ये मामला रूकावट बना हुआ था। मगर जब सआदतमंद (आज्ञाकारी) बेटी ने अपनी माँ के हक+ में दस्तबरदारी को कुबूल कर लिया तो 1 मई 1860 को बाकायदा दरबार करके इनको रईसा और शाहजहां बेगम को वली अहद के ओहदों दे दिये गये।
कर्नल डूरंड ने मुबारकबादी के खत के साथ यह भी लिखा कि भोपाल रियासत का इतिहास लिखने वालों को चाहिए कि फहम व फिक्र से नवाब सिंकदर जहां बेगम की बुलंद हिम्मती और मुस्तिकल मिजाज+ी का हाल लिखे।
चुनांचे इनके फरमाबरदार होने के आठ माह बाद जबलपुर के दरबार में लार्ड केनिंग ने बैरसिया की सनद अता की और इस बात का शुक्रिया अदा किया कि आपने इस रियासत की प्रमुख होने के बाद भी अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ तलवार नहीं उठाई। इसके बाद सन् 1861 में इलाहाबाद के दरबार में स्टार आफ इंडिया का तमगा और नायब ग्रंेड कमाण्डर का खिताब मिला। वो पहली भारतीय महिला थीं ये तमगा मिला।
इसके बाद बेगम साहिबा इस दरबार से वापसी में बनारस, जौनपुर, फैजाबाद, लखनऊ, फिरंगी महल, कानपुर, आगरा, मथुरा, दिल्ली, अजमेर होती हुई 1882 को भोपाल वापस आईं। इस सफर का सबसे बड़ा कारनामा यह है कि दिल्ली की जामा मस्जिद में नमाज+ पढ़ने वाले मुसलमानों के लिए इसे खोलने का गर्वमेंट से आग्रह किया। जो कि 1857 के स्वाधीनता संग्राम ेके समय से बंद कर दी गई थी। गर्वमेंट ने उनकी मांग को मान लिया और जामा मस्जिद दिल्ली को फिर से नमाजि+यों के लिए खोल दिया।
इसके बाद लार्ड डिलारेंस ने अकबराबाद में दरबार आयोजित किया तो उन्होंने वहां बताया कि जब मैं महारानी विक्टोरिया से रूखस्त ले रहा था तो उन्होंने मेरे साथ अपनी आखिरी बातचीत में फरमाया कि जो हमारे बाद औरतों में से हुक्मरां (शासक) है वो भोपाल की हैं और स्टार आफ इंडिया हैं, इनकी तरक्की व बेहतरी के लिए दिल से कोशिश करें।
सफरे हज व जि+यारत
बेगम साहिबा को इन दुनियावी सफरों के साथ दीनी सफर हज व जि+यारत की भी खुशनसीबी हासिल हुई। भोपाल रियासत की वो पहली हुक्मरां (शासक) जिन्होंने लगभग एक हजार लोगों के साथ यह मुबारक सफर किया। इन लोगों में इनकी वालिदा कुदसिा बेगम, मामू फौजदार मोहम्मद खान, मदारूल मुहाम मौलवी जमाल उद्दीन और बख्शी मोहम्मद हुसैन वगैरा शामिल थे।
सिंकदर जहां बेगम के दौरे हुकूमत में रियासत ने वो मुकाम हासिल किया जो मुगलिया सलतनत के दौर में अकबरे आज+म का था।
सिंकदर जहां बेगम पहली रईसा थीं जिन्होंने तीन साल के अरसे में पूरी रियासत का एक निज+ाम के साथ दौरा किया। इन दौरों में वो रियासत के हर शख्स से उसकी फरियाद और शिकायत सुनतीं और इन दौरांे के नतीजे में रियासत में मुकम्मल बंदोबस्त का एक निजाम कायम किया।
1. रियासत की नाप करवा कर इसकों तीन जिलों और 21 परगनांे में बांटा और हर परगने में थाने शहर में चैकियां और जमादारों को मुकर्रर किया गया। निज+ामत (कलेक्टरी) में पचास प्यादों और पचास सवारों का बेड़ा तैनात किया गया।
2. मालगुजारी के मुनासिब कानून तैयार किये गये, रियासत पर जो साढ़े तेईस लाख का कर्जा था उसे उतार दिया।
3. वसूली और काश्तकारी (कृषि) के बैंक कायम किये।
4. अदालतों के विभिन्न महकमे दीवानी और फौजदारी और उनके अलग-अलग कानून बनवाए। जुर्मों की संगीन सजाएं मुकर्रर की गईं। इन मुकदमों की अंतिम सुनवाई उनके दरबार में होती थी।
इन कानूनों में मालगुजारी का, काश्तकारी का कानून बनाया गया। पटवार जागीरात, जंगलात, ज+वाबित पुलिस और ज+वाबित मदारिस (स्कूल) शामिल थे।
काज+ी और मुफ्ती साहेबान के साथ आला ओहदेदारान रियासत की एक मजलिस सूरा (कमेटी) कायम की। जिसके अंदर आजादाना बहस और मुबाहिसे के बाद एक राय से कानून बनाये जाते थे। अदालतों में हिन्दुओं के धर्मशास्त्र और मुसलमानों के लिए कुरआन व सुन्नत के मुताबिक कानून लागू किये गये थे। इस तरह सन् 1847 से 1864 के बीच 134 कानून बना गये और उनका एक संग्रह तैयार किया गया।
सिकंदर जहां बेगम ने दुनियावी तालीम के लिए उर्दू, हिन्दी के मदरसे खुलवाये। अपनी बेटी मरहूमा सुलेमान जहां बेगम के याद में मदरसा सुलेमानिया 1853 में कायम किया। जिसमें उर्दू, हिन्दी, अंग्रेजी एवं दूसरे विषयों की शिक्षा दी जाती थी। इसके बाद मदरसा विक्टोरिया कायम किया। वो पहली शासक थीं जिन्होंने फारसी ज+बान के स्थान पर उर्दू ज+बान को सरकारी ज+बान बनाया।
इसी प्रकार एलोपेथिक इलाज के लिए एक अस्पताल कायम किया। गर्ज यह कि रियासत को मज+हबी व तरक्की याफ्ता बनाने में इनका बड़ा हाथ है। इनकी तामीरात में मोती मस्जिद, मोती महल, मदरसा सुलेमानिया (वर्तमान यूनानी शिफाखाना), सीहोर में मग्रिबी रूए संगीन मस्जिद और बाग फरहत अफज+ा हैं।
अख्+ालाक व सीरत
सिकंदर बेगम को बचपन ही से हुक्मरानी की तर्बियत दी गई थी इसलिए इनके अन्दर फरमारवी का शान व शिकवा व सिपहगीरी की महारत सिपाहियाना व मर्दाना मिजाज+ था। पुरशौकत चेहरा और कुदरती रोब व दाब था। दरबार में इनकी पेशानी पर ज+रा बल पड़ जाता तो मुंशियों के हाथ से कलम छूट जाते थे।
यूं आम हालात में सीधी- सादी जिन्दगी बसर करती थीं। इनके अन्दर जफाकशी का कुदरती माद्दा था। उन्होंने ही सबसे पहले मुहकमा तारीख (इतिहास विभाग) कायम किया और ताजुलइक+बाल भोपाल की तारीख लिखी। मदारूल मुहाम की तहरीक से कुरान पाक के उर्दू, फारसी, तुूर्की, पश्तो में तर्जुमा (अनुवाद) करा कर प्रकाशित किया।
सच्ची मज+हब परस्त होने के नाते इनके अंदर ताअस्सुब की परछाईं तक नहीं पड़ी थी। वो हिन्दू- मुसलमान सबको एक नज+र से देखती थीं और हर एक के साथ अच्छा बर्ताव करती थीं। सन् 1868 में रियासत की खिदमत करते हुए फानी दुनिया को अलविदा कहा और बाग फरहत अफज+ा में दफन हुईं।