तारीखे इस्लाम

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(38वीं किश्त)
दूसरे खलीफा हजरत उमर रजि
खलीफा का आदर्श
इसके बाद हजरत उमर रजि. जो दो जबरदस्त बादशाहों और बडी हुकूमतों को बुरी तरह हरा चुके थे, बैतुल मक्दिस की तरफ चले उनके कपडे पुराने थे, पैबंद लगे हुए थे, दुबले और कमजोर ऊंट पर वह सवार थे। उनके साथ उनका गुलाम था।
वे दोनों बारी-बारी ऊंट पर सवार होकर मंजिलें तै करते गये, चुनांचे जब वह शहर में दाखिल हुए तो उनका गुलाम ऊंट पर सवार था और हजरत उमर रजि. ऊंट की महार थामे हुए थे। मुसलमानों ने उनकी बडी खुशामद की कि वे कपडे बदल लें, मगर उन पर बिल्कुल असर न हुआ।
शहर में दाखिल होने पर ईसाई सरदार ने एक कमीज और चादर उन्हें पेश की। उन्होंने सिर्फ इस शर्त पर उसे कुबूल किया कि जब तक उनके कपडे धुल जाएं वे पहन लेंगे।
बैतुलमक्दिस में आप कई दिन तक ठहरे रहे और जरूरी फर्मान जारी करते रहे। एक दिन हजरत बिलाल रजि. ने अमीरूल मोमिनीन के पास शिकायत की कि अफसर तो अच्छे-अच्छे खाने खाते हैं और हमारे जैसे सिपाहियों को गरीबों जैसी बहुत ही मामूली रोटी दी जाती है।
अमीरूल मोमिनीन ने हुक्म दिया कि आगे से हर सिपाही को तनख्वाह और गनीमत के माल के अलावा अच्छा खाना सरकार की तरफ से दिया जाए।
हजरत उमर रजि. शहीद कर दिए गये
इस समझौते के बाद भी कुछ छोटी-बडी लडाईयों का सिलसिला चला, यहां तक कि रूम और फारस की दोनों बडी ताकतें इस्लामी हुकूमत के कब्जे में आ गयी। मिस्र की तरफ इस्लामी फौजें आगे बढीं और उसे भी अपने कब्जे में कर लिया।
यहां यह बात याद रखने की है कि इराक की लडाई में एक सख्तदिल शख्स फीरोज नामी गिरफतार होकर लडाई में पकडे गये कैदियों के साथ मदीना पहुंचा। हजरत उमर रजि. ने उसी वक्त भांप लिया कि मदीना में इन ईरानियों का ठहरना फायदेमंद न होगा, मगर सब लोगों की राय थी, इसलिये खामोश रहे।
यह बद-किस्मत मुगीरा बिन शोबा का गुलाम था। और बढईगिरी, लोहारी और नक्काशी का पेशा करता था। उस जालिम ने एक दिन आप के पास हाजिर होकर अर्ज किया कि मुगीरा में मुझ पर बहुत भारी टैक्स लगा रखा है, जो में अदा नहीं कर पाऊंगा।
आपने पूछा, कितनी रकम अदा करनी पडती है?
उसने जवाब दिया कि करीब सात आना रोज।
हजरत उमर को हैरत हुई, फरमाया कि तुम्हारे पेशों को देखते हुए यह रकम ज्यादा नहीं है, इसलिए में दखल नहीं दे सकता।
उस वक्त तो वह खामोश होकर चला गया, लेकिन दूसरे दिन सुबह की नमाज के वक्त खंजर ले कर मस्जिद के एक कोने में जा छिपा। सफें ठीक कर हजरत उमर ने रोज की तरह नमाज पढानी शुरू ही की थी कि उस जालिम ने छिप कर हजरत उमर रजि. पर लगातार छैः वार किये। जब नाफ के नीचे गहरा घाव आ गया तो उस हिम्मती खलीफा ने हजरत अब्दुर्रहमान बिन औफ का हाथ पकड कर अपनी जगह खडा कर दिया और खुद जमीन पर गिर पडे। कातिल ने इसी बीच और भी कई लोगों को घायल कर दिया और आखिर में अपने आप को भी मार दिया।
नमाज खत्म हुई, हजरत उमर रजि. की फौरन मरहम पट्टी की गयी, दवा दी गयी। घाव बहुत गहरा था। इसलिये वह बहुत तेजी से निढाल होते गये। लोगों को जब महसूस हुआ की मामला नाजुक हो गया है, उन्होंने मश्विरा किया, अपना जानशीन मुकर्रर फरमा दीजिये।
पहले तो हजरत उमर रजि. ने हजरत आइशा रजि. से इजाजत मंगवायी कि उन्ें प्यारे नबी सल्ल. के पहलू में दफन किया जाए। इजाजत मिल गयी। फिर आपने जानशीन के चुनाव पर ध्यान दिया। आपने बहुत सोचा, पर किसी एक पर इत्मीनान न हुआ। बहुत सोच-विचार के बाद छैः आदमियों-हजरात अली, उस्मान, जुबैर, तल्हा, साद बिन वक्कास और अब्दुर्रहमान बिन औफ का नाम लिया कि इनमें से जिस के बारे में ज्यादा लोगों की राय बने, उसे खलीफा मुकर्रर कर लिया जाए।
मुल्क व मिल्लत की तडप आप को आखिरी वक्त भी बे-चैन कर रही घ्थी चुनांचे फरमाया, खलीफा का फर्ज होगा कि वह मुहाजिर, अंसार, अरब के जो दूसरे लोग और बे अरब जो दूसरे मुल्कों में आबाद हैं और ईसाई यानी गैर-मुस्लिम जनता को ध्यान में रखे और हर तरह उनके माल व जान की हिफाजत करे।
इन तमाम नसीहतों से फारिगऋ हो कर आपने फिर अपने बेटे अब्दुल्लाह को याद फरमाया और उन्हें कुछ वसीयत की। फिर वह इंतिकाल फरमा गये।
इन्नालिल्लाहि व इन्ना इलैहि रजिऊन.
फिर हजरत उस्मान, तल्हा, साद बिन वक्कास, अब्दुर्रहमान बिन औफ और हजरत अली ने आपको कब्र में उतारा, आप की आरामगाह प्यारे नबी सल्ल. के पहलू में हैं।
ृइस दौर की खास बातें
हजरत उमर रजि.के दौर में इस्लाम बहुत दूर-दूर तक फैल चुका था। आपकी वफात के वक्त राज्य का कुल रक्बा (क्षेत्रफल) 22510130 वर्गमील था।
आपके दौर में हुकूमत सही मानी मैं जमहूरियत (लोकतंत्र) पर चल रही थी। आम जनता को भी इन्तिजामी बातों में दखल देने का हक था, यहां तक कि गर्वनर भी लोगों के मश्विरे से रखे जाते। चुनांचे जब अबूमूसा अश्अरी, गर्वनर बसरा के खिलाफ लोगों ने शिकायतें कीं तो उनकी जांच एक कमीशन के जरिए करायी गयी।
एक बार का जिक्र है कि एक आदमी मदीना की गलियों में बुलंद आवाज से कह रहा था कि क्या अमीरूल मोमिनीन की बख्शिश सिर्फ इस लिए हो जाएगी कि उन्होंने गर्वनरों को मुकर्रर करने के कुछ उसूल बना दिये हैं? क्या उनको मालूम है कि अयाज बिन गनम बहुत बारीक कपडे पहनते हैं और दरवाजे पर दरबान मुकर्रर कर रखे हैं, ताकि गरीब लोग उन तक न पहुंच पाएं और उन्हें हर वक्त फरियादी आकर तंग न करते रहें। (क्रमशः)