दूसरी सुबह

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मैं दफ्तर से घर आ भी नहीं पाया था कि जंगल में फैली आग की तरह मेरे तबादले की खबर सारे जिले में फैल गई। शीला को भी किसी अफसर की पत्नी ने मेरे घर पहुंचने से पहले ही टेलीफोन से खबर कर दी थी।
मैं पहुंचा तो शीला बरामदे में ही खड़ी थी। जीप से उतर कर मैं जैसे ही उसके पास पहुंचा उसने कहा- ‘आपने टेलीफोन तक नहीं कियाÓ
‘किस बात काÓ
‘तबादले काÓ
मैं ठहाका मार कर हंस पड़ा, ‘तबादला-अरे यह भी कोई बताने की बात है नौकरी और तबादले में चोली दामन का संबंध है। जब नौकरी की है तो तबादला तो होगा ही……….अपना दाना पानी मुकद्दर से नहीं सचिवालय के एक कागज के टुकड़े से बंधा रहता है……….Ó
तभी भीतर टेलीफोन की घंटी टन टना उठी। अटेंडेंट टेलीफोन लाकर मुझे दिया।
‘हॉ- बोलिये- कलेक्टर स्पीकिंगÓ
‘सर इतनी जल्दी आप जिले से जा रहे हैं, हम लोग तो न जाने क्या-क्या आशायें आप से लगाये थे। आपने तो थोड़े ही दिनों में जिले का कायापलट कर दियाÓ शहर की एक स्वयं सेवी संस्था का अध्यक्ष बोल रहा था।
‘अरे नौकरी में तो यह सब चलता ही है, आज यहां तो कल वहां फिर इतने दिन आपके बीच रहा, जितनी बन सकी जिले की सेवा की आप का सहयोग मिला, इसका आभारी हूं, फिर चिंता की क्या बात आपके नये कलेक्टर मुझसे ज्यादा स्मार्ट आ रहे हैं………….Ó
‘सर क्षमा करेंगे- लोकल बात बंद करने की कृपा करें- राजधानी से आपका अरजेंट काल हैÓ बीच में ही टेलीफोन आपरेटर ने अनुरोध के स्वर में कहा।
राजधानी से मुख्य सचिव बात करना चाह रहे थे।
‘यस कलेक्टर स्पीकिंगÓ
‘ऐसा है- यू नीड नाट टू हेन्ड ओवर दा चार्ज। सीएम का अभी-अभी मेसेज मिला है वे आपको उसी जिले में ‘कन्टीन्यूÓ करना चाह रहे हैंÓ।
‘पर सर मैं तो शाम को ही एडीएम को चार्ज दे चुका हूँ।Ó
‘उससे क्या फर्क पड़ता हैÓ यू टू कन्टीन्यू फिर प्यार के स्वर में कहा सब चलता है- ये तो सरविस है।
एज यू लाइक सर।
उन्होंने गुडलक कहते हुए फोन रख दिया।
मैं अचरज में था कि यह सब क्या हो रहा है। दो घन्टे पहले तबादला तथा दो घण्टे बाद ही केन्सिल, क्या पहला तबादला सीएम की नालेज में नहीं आया था।
तभी चपरासी ने आकर बताया कि कोई रमेश वकील सा. आपसे मिलना चाहते हें।
रमेश- मेरे बचपन का साथी। मैंने सोचा मेरे तबादले की खबर पाकर वह मिलने चला आया है। मैंने चपरासी को उसे बैठक खाने में बिठालने के लिये कहा।
मेरे बैठक खाने में पहुंचते ही रमेश ने कहा- ‘आपको राजधानी से कोई मेसेज मिलाÓ
हॉ- मेरे तबादले का।
आपने चार्ज तो नहीं दिया।
क्यों- मैं तो दे चुका हूँ।
बड़ी जल्दी कर दी आपने- घण्टे दो घण्टे रूक लेते।
ब्रदर मैंने समझाइश के स्वर में कहा- अपन ठहरे सरकारी नौकर- इधर आर्डर उधर पालन- आप जैसे स्वतंत्र तो हैं नहीं कि मूड हुआ केस लेंगे नहीं तो नाही कर दी। कोई लाख रूपया दे पर मामला नहीं लेना है तो आप पर कोई दबाव भी नहीं डाल सकता। किसी के पक्ष में फ्री भी खड़े हो गये तो कोई वित्तीय नियम भंग नहीं होता- प्यारे भाई स्वतंत्र कारोबार के नजारे ही अलग हैं और नौकरी वह चाहे किसी भी स्तर की क्यों न हो- नौकरी ही होती है। ऊपर के अधिकारी के दस्तखतों की एक चिडिय़ा कुछ से कुछ कर सकती है।
वह तो ठीक है। वह बोला पर इतनी जल्दी भी क्या थी आप जिले के सर्वोच्च अधिकारी है, आप के साथ केवल आपका नहीं सारे जिले का भाग्य जुड़ा रहता है।
जिले में कलेक्टर ही एक ऐसा आदमी होता है जो अपने एकान्त के क्षणों में यह सोचता है कि मेरे जिले में कहां क्या हो रहा है। इसकी तरक्की कैसे हो इसके दुख दर्द कैसे मिटे। दस हजार वर्ग किलोमीटर का उसका घर होता है और आठ दस लाख लोग उसके परिवार के सदस्य हैं………
और मुझे खुशी है कि तुमने इसी भावना से काम दिया है सारा जिला तुम्हें अपना मानने लगा हैं, लोगों का इतना ममत्व तुमने पाया है कि लोग घरेलू मामलों तक मैं तुम से सलाह लेने को उत्सुक रहते हैं………
यह तो लोगों की उदारता है- मैंने कहा- मैंने तो अपने कर्तव्य का पालन किया है, इससे कुछ लोग नाराज भी रहे जिनके प्रति मुझे कर्तव्यवश कठोर बनना पड़ा- शायद वे लोग तो मेरे तबादले से खुश ही होंगे।
देखो भाई अच्छे आदमी से चार लोग नाराज रहते हैं, तो दस लोग खुश भी रहते हैं। नाराज लोग हमें जयादा इसलिये लगते हैं कि वे अच्छे आदमी की बुराई तथा अहित करने की लगातार कोशिशें करते रहते हैं और उसका प्रचार भी करते हैं। पर अच्छे आदमी को चाहने वाले यद्यपि शांत रहते हैं पर मौका आने पर अपने प्रिय व्यक्ति के लिये सब कुछ कर सकते हैं।
तुम्हें शायद मालूम न हो या तुमने ध्यान ही नहीं दिया होगा कि तुम्हारे खिलाफ यहां के कुछ स्वार्थी लोग लगातार प्रदेश प्रशासन को बरगलाते रहे हैं पर जब उनकी एक चाल न चली तो उन्होंने एक दूसरे जिले के प्रभावी गुट से सम्पर्क साधकर यह प्रचारित करने की कोशिश की कि अगर आप उनके जिले में पहुंच जायेंगे तो जिले का प्रशासन चुस्त दुरूस्त हो जायेगा। अन्तत: उन्हें इसमें सफलता भी मिल गई। तुम्हें उस जिले से भेजने का प्रस्ताव प्रदेश-प्रशासन ने मान लिया।
पर जिले के लोग तो इन स्वार्थी नेताओं की चालों पर न$जर रखे ही हुए थे। उन्हें जैसे ही इस बात का पता चला कि अच्छाई की आड़ लेकर तुम्हें इस जिले से बाहर भेजने का कुचक्र चल रहा है उन्होंने भी मुख्यमंत्री से संपर्क साधा, मुख्यमंत्री के सामने स्थिति स्पष्टï की। वे भी सब समझ गये और उन्होंने तुम्हें और कुछ दिनों इस जिले में रखने के निर्देश प्रदेश प्रशासन को दिये हैं क्या तुम्हें यह मेसेज नहीं मिला।
तो यह बात है रमेश-मैं ही आश्चर्य में था कि शाम को तबादला तथा दूसरी सुबह जहां थे वहीं क्या माजरा है।
पर मुझे क्या। मैं तो अपने आपको नियति का एक खिलौना मानता हूँ। आत्मा का निर्देश ही मेरे लिये सब कुछ है। परिस्थितियां सामने आने पर आत्मा जो कहती है मैं वैसा ही करता हूँ। किसी की नाराजी या प्रसन्नता की मुझे परवाह नहीं, और मुझे फिक्र है कि मेरी आत्मा ने कभी भी मुझे धोखा नहीं दिया। मुझे तो गीता के इस वाक्य पर भरोसा है कि ‘तू अपनी कुशल क्षेम मुझे सौंप कर अपने कर्तव्य में लगा रह।Ó