(41वीं किश्त)
तीसरे खलीफा हजरत उस्मान रजि.
बाद के छः साल
पहले छः साल के अन्दर यह आम ख्याल था कि हजरत उस्मान अपनी सूझ-बूझ, हिम्मत और बहादुरी में किसी तरह भी हजरत उमर से कम नहीं हैं, लेकिन बाद के छः सालों में लोगों को बहुत ज्यादा शिकायतें पैदा हो गयी थीं। और ज्यादातर लोग यही समझने लगे थे कि इन शिकायतों का एक ही इलाज है, वह यह कि अमीरूल मोमिनीन यानि खलीफा को हटाया जाए।
लोगों को शिकायत पैदा हुई कि अमीरूल मोमिनीन अपने रिश्तेदारों को ऊंचे-ऊंचे ओहदे दे रहे हैं, चाहे उसके योग्य हों या नहीं।
इस बात की भी शिकायत थी कि अमीरूल मोमिनीन गर्वनरों के खिलाफ शिकायतें सुनने से इंकार करते हैं, क्योंकि वे उनके अपने करीबी लोग हैं।
ये और इसी तरह की दो चार शिकायतें जनता में पैदा हो गयी थीं। लेकिन गौर किया जाए तो इन शिकायतों में कोई जान न थी, बद गुमानी का ज्यादा दखल था।
अमीरूल मोमिनीन उस्मान की खिलाफत के आठवें साल में
एक आदमी, जिस का नाम इब्ने सबा था, जो यहूदी नस्ल का यमनी था, बसरे आया। उसकी माॅ हब्शिन थी । उन दिनों बसरा के गर्वनर अब्दुल्लाह बिन उमर थे। यह आदमी यहां पहंच कर मुसलमान हो गया। कहा जाता कि वह मुनाफिक था और उसका इस्लाम कुबूल करना सिर्फ एक होना था।
शुरू में उसने अपना ध्यान गर्वनर के खिलाफ प्रचार करने में लगाया था। यह एक तीर से दो शिकार करना चाहता था। उसका ख्याल था कि इससे एक तो गर्वनर के खिलाफ बेचैनी बढेगी और दूसरे खलीफा के खिलाफ लोगों में सुन-गुन शुरू हो जाएगी कि क्यों उन्होंने ऐसे ना-काबिल, बुरे और गर्वनर मुकर्रर किये।
जब गर्वनर बसरा को उसकी साजिश का पता चला तो उसने हुक्म दिया कि इसे बसरा से निकाल दिया जाए। यहां से निकल कर वह कुछ दिनों कूफा, शाम और मिस्र में घूमता फिरा। अगर्चे वह हर जगह से जहां कहीं गया, निकाला ही गया, फिर भी फूट और साजिश का बीज हर जगह बोने में वह कामियाब हुआ। सिर्फ शाम ही एक ऐसी स्टेट थी, जहां उसका सालार कामयाब न हो सका, इसलिए कि अमीर मुआविया की सूझ-बूझ उनकी साजिश से बढ-चढ कर थी।
इब्ने सबा की साजिश
इब्ने सबा की मां हब्शी नस्ल की थी, इसलिए लोग उसे इब्ने सौदा रहा करते थे। जब यह आदमी शाम में था तो उसने एक सीधे-सादे सहाबी जरत रजि. जो बहुत ही नेक आदमी थे, मगर दुनिया और दुनिया के सूत्रों को बिल्कुल नहीं जानते थे। न जाने उनके दिमाग में यह बात कैसे हो गयी थी कि मुसलमान के लिए माल जमा करना सुन्नत व शरीअत के खिलाफ, है, वह हमेशा यही कहा करते कि मुसलमान को जो माल जरूरत से ज्यादा बचे, उसे गरीबों में बांट देना चाहिए।
इब्ने सौदा ने इन से मुलाकात की, कहा, देखिए अमीर मुआविया गर्वनर शाम बैतुल माल को अल्लाह का माल कहता है, हालांकि हर चीज अल्लाह की है तो फिर उस माल को अल्लाह का माल कहने का क्या मतलब? इसका मक्सद सिर्फ यह है कि वह खुद बैतुल माल को हजम कर जाए यह अल्लाह के नाम पर गरीबों को धोखा दे रहा है। अबूजर के दिमाग में पहले ही यह बात समायी हुई थी कि मुसलमान के लिए माल जमा करना गुनाह है, इसलिए वह उसकी चालों के आसानी से शिकार हो गये।
जब अमीर मुआविया को इसका इल्म हुआ कि इब्ने सौदा की चालों का असर लेकर अबूजर मुसलमानों में नफरत फैला रहे हैं तो उन्होंने अबूजर को समझाया कि आप ऐसी बातें छोड दें, क्योंकि इन के बुरे नतीजे ही निकलते हैं। फिर भी अबूजर अपनी बात पर जमे रहे।
इसी तरह इब्ने सौदा बराबर अपने काम में लगा रहा और दूसरे सहाबियों के पास पहुंच कर उनके उकसाना शुरू किया। मगर ये अबूजर की तरह सादा तबियत नहीं थे। हर मामले को खूब समझते थे। वे फौरन ताड गये कि इब्ने सौदा मुसलमानों में फूट के बीज डाल रहा है। उबादा बिन उसामा अमीर मुआविया के पास पहुंचे और इस आदमी की शरारतों का जिक्र करते हुए गर्वनर को मश्विरा दिया कि वह उसे शाम से निकाल दें। इस पर गर्वनर ने उसको शाम से निकल जाने का हुक्म दे दिया।
इब्ने सौदा तो चला गया लेकिन अबूजर अपनी बात पर जमे रहे। गर्वनर ने खलीफा की रिपोर्ट कर दी। खलीफा ने उन्हें बुलाया, समझाया लेकिन जब वह न माने तो उन्हें, फित्ने फैलने न पायें, इससे बचने के लिए शाम के बजाए रेजा चले जाने का हुक्म दिया गया वहीं दो साल बाद इंतिकाल फरमा गये।
अगरचे हजरत अबूजर ने तमाम उम्र कोई ऐसा काम न किया जो कानून और शरीअत के खिलाफ हो, मगर उन लोगों ने, जो इन बातों से नाजायज फायदा उठाना चाहते थे, इसका खूब प्रचार किया कि एक सहाबी को देश निकाला दे दिया गया है।
इब्ने सौदा मिस्र पहुंचा तो उस का प्रोपगन्डा और तेज हो गया। अब तो वह हजरत उस्मान के खिलाफ जहर उगलने लगा था। हर तरीके से लोगों को भडकाता, मामूली-मामूली बातों को ऐसा रंग देकर बयान करता कि हुकूमत के खिलाफ लोग भडक उठें।
बाद में इब्ने सबा और उसके एजेंटों ने तो यही पेशा ही अख्तियार कर लिया कि प्रोपगंडे करके पूरे देश में बेचैनी का माहौल पैदा कर दें। इस तरह दिन और रातें गुजरती गयीं, जब इनकी गिनती की गयी तो मालूम हुआ कि चार साल की लम्बी मुद्दत गुजर चुकी है। और इन बागियों और फित्ना फैलाने वालों ने एक भयानक सूरत पैदा करदी है, बस खुल्लम खुल्ला बगावत की देर है।
प्रोपगंडा करने में इब्ने सबा ने एक नयी चाल यह चली कि गवर्नरों को बदनाम करने के लिए दूसरे राज्यों में प्रचार किया जाए यानी यह कि कूफा के गर्वनर को बदनाम करने के लिए शाम में प्रोपगंडा किया जाए और शाम के गर्वनर को दूसरे राज्य में। इसमें यह भेद है कि अगर किसी गर्वनर को उसके इलाके में बदनाम किया गया तो लोग फौरन कह उठेंगे कि यह गलत प्रोपगंडा है, लेकिन अगर दूर के राज्यों में बदनाम किया जाए, तो चूंकि असल हालत मालूम ही न हो सकेगी, इस बदगुमानी जड पकडने लगेगी।
इस नये तरीके में वे ज्यादा कामियाब रहा। हर चारों तरफ से मदीना में खत आने लगे कि फ्लां वैसा है। हजरत उस्मान ने फौरन पूरे मुल्क में जांच का हुक्म दे दिया और अलग-अलग लोगों को जांच करने का हुक्म दिया।
सबने पूरी ईमानदारी और इंसाफ के साथ जांच की, हर जगह यही मालूम हुुआ कि किसी को कोई शिकायत नहीं है, लोग मुतमईन और खुश हाल हैं, सिर्फ मिस्र की रिपोर्ट साजिश का शिकार हो गयी।