गबन्

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दो तीन दिन के दौरे के बाद मुख्यालय लौटा था, मेरी टेबिल पर फाइलों का ढेर जमा हो गया था। वैसे मेरी आदत थी कि जिले में जब भी मैं दौरे पर रहता तो चपरासी द्वारा रोज रात को बाहर से आई जरूरी डाक और आवश्यक फाईलें जिला मुख्यालय से बुलवा लेता था तथा रात में उन्हें निपटा कर सुबह उन्हें जिला दफ्तर भेज देता था, इससे दो फायदे होते एक तो कोई जरूरी काम रूकता नहीं था। किसी को यह कहने का मौका भी नहीं मिलता था कि कलेक्टर सा. के दौरे पर रहने के कारण दफ्तर का काम रूका रहा और जनता के कामों में विलम्ब हुआ दूसरे मुझे भी कलेक्ट्रेट में क्या चल रहा है इसका पता चलता रहता।
मेरे अधीनस्थ अधिकारी और कर्मचारी भी चुस्त बने रहते मैं जिला मुख्यालय में रहूँ या दौरे पर उन्हें फाइलें तो भेजनी ही पड़ती। वे किसी काम के लिये बहाना नहीं बना पाते थे कि ‘सर आप दौरे पर रहे इस कारण काम में देरी हुई।Ó
आजकल दफ्तरों की लेट लतीफी और लाल फीता शाही से सभी स्तर पर लोग परेशान हैं। आम शिकायत सुनने को मिलती है कि सरकारी दफ्तरों में फाइलें दबी रहती है। उनका ‘मूमेंटÓ ठीक से नहीं होता।
मैंने दफ्तर की ‘टोन अपÓ करने के लिये ऐसे ही कुछ नियम बना रखे थे कि हर काम समय पर हो, फाइल कहीं रूके नहीं, पर मैं इन दो-तीन दिनों में जिले के घनघोर जंगली इलाके में रहा। आदिवासी की कुछ समस्यायें थीं, इसलिए मैंने वहां फाइलें नहीं बुलाई और कुछ फाइलें इक_ïी हो गई।
मैं साढ़े दस बजे ही अपने दफ्तर आ गया और पुरानी फाइलें निपटाने लगा। मैं चाहता था कि जल्दी से जल्दी ये निपटे तो फिर अधिकारियों को नये काम करने के निर्देश दूं।
तभी कमरे के दरवाजे पर टंगा परदा हिला मैंने न$जर दौड़ाई ना$िजर हाथ में रजिस्टर लिये खड़ा था।
‘हां आ जाओÓ मैंने उसे आने की इजाजत दी।
वह भीतर आया तथा मेरे सामने टेबिल पर रजिस्टर खोलकर रख दिया-बोला ‘सर यहां दस्तखत कर दीजिये। आपका टीए बिल आया हैÓ
‘अच्छाÓ मैंने दस्तखत कर दिये। उसने हाथ में लिये रूपये मेरी ओर बढ़ाये।
‘कितने हैÓ
‘सर तीन सौ बीस रूपये पचास पैसेÓ
‘ठीक हैÓ कहता हुआ जब मैं उन नोटों को अपनी जेब में रखने लगा तो मुझे लगा कुछ ज्यादा हैं। मैं उन्हें गिनने लगा। वैसे मेरी रूपये गिनने की आदत नहीं है जिसने जो दिया उसे सहज भाव से ही बिना देखे मनीबेग में रख लेता हूँ। हमेशा से मेरा इस बात पर विश्वास रहा है कि जो मेरा है उसे कोई दूसरा ले नहीं सकता और जो मेरा नहीं है से मैं किसी प्रकार बचा भी नहीं सकता हूँ।
वैसे मुझे पैसे मिलने के अवसर भी कम ही मिलते हैं। वेतन तो मेरा सीधा बैंक के माध्यम से मेरे सेविंग खाते में जमा हो जाता है जिसमें से शीला ही महीने में समय-समय पर पैसे निकाल कर घर का खर्च चलाती रहती है। सरकारी काम काज के लिये तो पैसों का लेनदेन मेरा नाजिर या संबंधित अधिकारी करते हैं मेरी तो केवल स्वीकृति लगती है। मुझे हाथ में तो केवल यही टीए या अन्य समय समय पर मिलने वाले कुछ भत्ते ही मिलते हैं।
मुझे रूपये गिनते देख नाजिर कुछ घबड़ा सा गया। उसके चेहरे पर भय की रेखायें उभर आई।
मैंने रूपये गिने तीन सौ बीस की जगह छै: सौ बीस रूपये थे। नाजिर ने पचास पचास के छै: नोट देने की जगह सौ सौ के छै: नोट दे दिये थे। मैंने न$जरें ऊपर उठा कर उसकी ओर देखा। अब तो उसकी हालत और भी खराब हो गई। वह लगभग कांपने लगा।
मैंने रूपये उसकी ओर बढ़ाते हुए कुछ कड़े स्वर में कहा ‘गिनो कितने हैंÓ अब तो वह बुरी तरह से कांपने लगा- उसने भी देख लिया था कि उससे गलती हो गई है।
वह खामोश रहा तो मैंने गुस्से से ही कहा- ‘इसी तरह से सरकारी काम करते हो- जानते नहीं सरकारी पैसों का लेन-देन करना सांप नचाते समय जब तक तुम्हारी बीन ठीक ढंग से बजती रहेगी तब तक तो वह बीन के स्वरों पर फन हिलाता रहेगा किन्तु तुम्हारी बीन जरा देर को रूकी नहीं कि वह झपट कर तुम्हारे हाथ में ही काटेगा। उसी प्रकार सरकारी पैसे का हाल है जब तक तुम सावधान हो तब तक कुछ नहीं किन्तु अगर जरा सी भूल चूक हो गई या सरकारी पैसों में गड़बड़ी हुई तो रूपया तो भरना ही पड़ता है गबन का जुर्म भी बनता है।
‘सर। गलती हुईÓ वह गिड़गिड़ा कर बोला- ‘अब नहीं होगी- सर माफ करें- आजकल घर-गृहस्थी की चिन्ताओं से………Ó
‘यही बात तुमने पिछले महीने भी कही थीÓ मैंने कहा- ‘जब पिछले महीने तुम्हारे केशÓ में दो हजार रूपये कम पाये गये थे, उस समय भी तुमने घर की परिस्थितियों का हवाला दिया था। मैंने तुम पर विश्वास करके तुम्हें किसी भी प्रकार केश पूरा करने को कहा था- नहीं तो जानते हो सरकारी पैसे में कमी का सीधा अर्थ होता है गबन और उसकी सजा होती है जेल।
‘सर मैं आपके पैर पड़ता हूँÓ वह रोने लगा- ‘आप विश्वास रखे। मैंने न तो उस समय कोई गड़बड़ी की थी और न ही इस बार न जाने क्यों आजकल मुझसे भूल होने लगी है। सर पिछले बीस सालों से नाजिर हूँ, लाखों का लेन-देन किया पर कभी………Ó
ठीक है मैंने कहा,
उसने अतिरिक्त सौ के तीन नोट ले लिये तथा कमरे के बाहर चला गया।
वह चला गया तो मैं उसके बारे में सोचने लगा। पिछले महीने नजारत में दो हजार रूपये कम होने की बात जब मेरे सामने लाई गई तभी मैं चौंक पड़ा था। मैंने इस नाजिर के पिछले रिकॉर्ड के विषय में पता लगाया तो मुझे कहीं इसके प्रति कोई विपरीत बात नहीं मिली। एक कलेक्टर ने तो इसकी प्रशंसा में लिखा था कि इसके समान चरित्रवान तथा ईमानदार नाजिर आजकल बहुत कम मिलते हैं, उन कलेक्टर के कार्यकाल में जिले में एक विशाल सिंचाई बांध बंध रहा था जिसकी डूब में आने वाली भूमि का मुआवजा सैकड़ों किसानों को बांटा गया था। लाखों रूपये के वितरण का काम इसी नाजिर ने किया था किन्तु कहीं से कोई शिकायत नहीं मिली थी।
इस बीच एक-दो लोगों ने दबी जवान से मुझसे यह भी कहा था कि नाजिर इसी साल अपनी बच्ची की शादी करना चाहता है। हो सकता है उसी के लिये इसने कैश से दो हजार की हेरा-फेरी की हो।