हिम्मत की धनी थीं साधना

0
644

क्या गुजरेगी उस हसीना पर, जिसकी आंखें परवानों को समा लेने की कशिश रखती हों, जिसकी आंखें ही उसके हुस्न की पूंजी हों… और एक दिन उस हसीना को अचानक पता चले कि उसके चेहरे का नूर संवारने वाली आंखों ने उसके साथ दगा कर दिया है?
अपनी बोलती आंखों और अपने बालों के कट का तोहफा उस जमाने की फैशन परस्त लड़कियों को देने वाली साधना के साथ आंखों ने कुछ ऐसा ही दगा किया था। साधना कट बालों की लोकप्रियता का आलम यह है कि लोग लालू प्रसाद के बालों की स्टाइल भी साधना कट से जोडऩे में नहीं चूकते।
सच पूछा जाए तो साधना की सारी खूबसूरती उसकी आंखों और बालों की स्टाइल में ही सिमटी हुई लगती थी। फिल्म ‘मेरे महबूबÓ में सोयी हुई हुस्ना की आंखों की कशिश ने ही तो उसके परवाने शायर अनवर (राजेंद्र कुमार) को यह कहने पर मजबूर कर दिया था- ‘ये हुस्न जरा जाग तुझे इश्क जगाये…Ó।
एक ट्रेड मैगजीन में छपी साधना की फोटो में फिल्मकार एस. मुखर्जी को शायद उनकी आंखों ने ही अपनी तरफ खींचा था और वह इस लड़की के बारे में मालूमात इक_ïा करने की मुहिम में लग गए थे। उसी मुहिम में उनको पता चला था कि साधना के अंकल हरि शिवदासानी तो पहले से ही फिल्मों में काम करते रहे हैं।
फिर क्या मुश्किल थी? एस मुखर्जी ने हरि शिवदासानी को पकड़ा और अंकल दासानी ने अपनी भतीजी से उनकी मुलाकात करवा दी। साधना का भी सरनेम दासानी ही था। तब तक वह मुंबई के जयहिंद काजेल में पढ़ रही थीं और इधर उनके सामने उनके नए कैरियर के दरवाजे खुल रहे थे- ‘लव इन शिमलाÓ की मार्फत। एस मुखर्जी को अपनी इस फिल्म के लिए एक हीरोइन की तलाश थी।
यह भी कम दिलचस्प नहीं कि एस मुखर्जी ने साधना को ‘लव इन शिमलाÓ के लिए अपने बेटे जॉय मुखर्जी के साथ तब साइन किया था, जब जॉय के साथ इंडस्ट्री की कोई नामी हीरोइन काम करने को राजी नहीं हो रही थी। कारण था, जॉय की लंबाई। उनकी लंबाई पर उस वक्त की कोई हीरोइन खप ही नहीं रही थी, मगर साधना हीरो की लंबाई देखकर नहीं भागीं।
उन्होंने खूब जमकर ‘लव इन शिमलाÓ किया और हो गया चमत्कार! हीरो और हीरोइन दोनों की गाड़ी चल निकली। इस चलती गाड़ी में बिमल राय भी सवार हो लिए और उन्होंने फिल्म ‘परखÓ साधना के साथ लांच कर दी।
यह फिल्म ‘लव इन शिमलाÓ में साधना के रोल से एकदम हटकर थी, लेकिन इस फिल्म में भी साधना ने अपनी एक्ंिटग का लोहा बिमल राय जैसे फिल्मी योद्धा से मनवा ही लिया और उनकी अगली फिल्म ‘प्रेम पत्रÓ में फिर साधना को रिपीट किया गया। हीरो थे- शशि कपूर। फिर तो झड़ी लगती गई फिल्मों की।
ऋषिकेश मुखर्जी ने साधना को देव आनंद के साथ ‘असली नकलीÓ तो कृष्ण चोपड़ा ‘चार दीवारीÓ लेकर साधना के पास दौड़ पड़े। सुनील दत्त के साथ वाली ‘गबनÓ भी धूम मचा गई। इसके बाद नवकेतन की ‘हम दोनोंÓ साधना के लिए एक चुनौती थी। इसमें जमी-जमाई नंदा का भी महत्त्वपूर्ण रोल था, लेकिन इसके बावजूद देव को साधना की बोलती हुई आंखों से यह फरियाद करनी पड़ी- ‘अभी ना जाओ छोड़ के… के दिल अभी भरा नहीं…Ó।
वैसे भी देव आनंद का दिल किसी हीरोइन से कभी भरता नहीं था। फिर आए राजेंद्र कुमार ‘मेरे महबूबÓ की हुस्ना के सामने यही फरमाइश लिए हुए- ‘ऐ हुस्न जरा जाग तुझे इश्क जगाए…Ó। इस फिल्म ने नौजवानों को साधना उर्फ हुस्ना का दीवाना बना दिया। साधनाकट बालों की धूम भी इसी फिल्म से मची।
कामयाबी लगातार साधना के कदम चूमे जा रही थी। शम्मी कपूर के साथ ‘राजकुमारÓ में साधना भी रियल की राजकुमारी ही लगी थीं। रामानंद सागर की ‘आरजूÓ में एक बार फिर राजेंद्र कुमार और साधना एक साथ हुए। ‘वह कौन थीÓ मनोज कुमार के साथ, ‘मेरा सायाÓ सुनील दत्त के साथ और ‘अनीताÓ धर्मेन्द्र के साथ करने के बाद अचानक साधना के कैरियर को ग्रहण लग गया।
उनको टॉयफायड बुखार ने इस बेरहमी से अपनी लपेट में लिया कि उनकी बोलती हुई आंखों को ही खतरा पैदा हो गया। अचानक के इस झटके के बारे में साधना ने सोचा भी न था। जिन आंखों पर उनको नाज था और जो आंखें पर्दे पर उनके किरदार को अपने आप बयां कर देती थीं, उन आंखों की रोशनी के लिए साधना को छह महीने बोस्टन में रहना पड़ा और यहीं से साधना के कैरियर का ढलान शुरू हो गया।
यही नहीं, आंखों का इलाज चलते-चलते साधना की हलक में भी घुन लग गया और उन्हें डायलॉग बोलने में परेशानी होने लगी। फिल्म ‘एक फूल दो मालीÓ में साधना की आंखों और हलक में विकार आ जाने के लक्षण स्पष्टï दिखाई दिए।
कुदरत के इस तमाशे ने साधना को मानसिक रूप से तोड़कर ही रख दिया था। फिर इसी मानसिक तनाव के बीच उसने अपने पति आर के नैयर की फिल्म ‘इंतकामÓ हाथ में ली। लेकिन वह अंदर से इतनी अपसेट रहने लगी थीं कि इस फिल्म के दौरान अपने पति के साथ भी उनका टकराव चलता रहा।
किसी तरह फिल्म पूरी तो हो गई, लेकिन नैयर के साथ उनका मनमुटाव बढ़ता गया और यह टकराव आर के नैयर की ही ‘गीता मेरा नामÓ तक इस नौबत को पहुंच गया कि साधना ने भविष्य में एक्ंिटग करने से ही तौबा कर ली, लेकिन एक्ंिटग पीछा छोड़ती कहां है? कुंठा ने साधना के स्वास्थ को भी खराब करके रख दिया था।
उनकी एक आंख बेवक्त ही जवाब दे चुकी थी। एक दिन अशोक कुमार का सामना हुआ तो उन्होंने साधना की हालत देखकर उनको नसीहत दी- ‘पहले अपनी सेहत देखो। फिर कैरियर के बारे में सोचो।Ó अशोक कुमार के कहने पर ही साधना फिर लंदन इलाज के लिए पहुंचीं।
इलाज से उनकी बाईं आंख तो बच गई, लेकिन दाहिनी आंख को डॉक्टर सुरक्षित नहीं रख पाए, पर डॉक्टर साधना को एक एक्टर के नाते किसी भी हालत में नर्वस नहीं होने देना चाहते थे। उन्होंने साधना का हौसला बढ़ाते हुए नवाब पटौदी की मिसाल सामने रखी, जिनकी एक आंख कार एक्सिीडेंट में चली गई थी। उसके बावजूद पटौदी ने एक आंख से भी क्रिकेट की दुनिया में नाम कमाया।
डॉक्टर ने साधना से कहा- ‘अपने दिल से निकाल दीजिए कि आप अपनी आंख खो चुकी हैं। अगर स्क्रीन पर एक्टर हालात से मात नहीं खाता तो फिर रियल लाइफ में भी उसे हर हालत से मुकाबला करने की हिम्मत रखनी चाहिए।Ó और सचमुच डॉक्टर के बोल साधना को चुभ गए।
उन्होंने नवाब पटौदी की मिसाल को सामने रखकर अपनी मायूस जिंदगी को एक नया मोड़ देने का फैसला किया और इस फैसले के साथ ही वह पूरे जोश-ए-खरोश के साथ अपने पति के ऑफिस में उनका अकाउंट संभालने जा पहुंचीं। उस वक्त हक्का-बक्का बने आर के नैयर की भी खुशी का ठिकाना नहीं रहा था। अरशद असलम