(42वीं किश्त)
तीसरे खलीफा हजरत उस्मान रजि.
खलीफा ने सक्र्युलर के जरिये भी हालात मालूम किये, आपने हज के मौके पर लोगों के मिलने की आम इजाजत दे दी कि वे आकर शिकायतें करें, ताकि उन्हें दूर किया जा सके। गर्वनरों की मीटिंग बुला ली। इब्ने सबा की शरारतों का भी जिक्र आया लेकिन हजरत उस्मान की नर्मी ने उस पर बहुत ज्यादा सख्ती करने की इजाजत नहीं दी।
इब्ने सौदा को खूब मालूम था कि हज के मौके पर गर्वनरों की कांफ्रेंस हो रही है, तमाम गर्वनर और बडे ओहदेदार अपने इलाकों से गायब हैं, इसलिए उसने इस मौके से खूब फायदा उठाने की ठान ली। उसने तै किया कि फ्लां दिन बाकी ओहदेदारों पर हर जगह हमला करके उन्हें कत्ल कर दिया जाए और हजरत उस्मान के खिलाफ एक आम बगावत पैदा कर दी जाए।
दूसरी जगह तो साजिश कामियाब न हो सकी, मगर कूफा में जो शरारतों का हेड क्वार्टर था, एक जल्सा हुआ और यहीद बिन कैस ने मिम्बर पर चढ कर कहा कि अब हजरत उस्मान को खिलाफत से अलग कर देना चाहिए। काकाअ बिन उमर जो छावनी के अफसर थे, अपने सिपाहियों के साथ वहां आ पहुंचे और यजीद बिन कैस को गिरफ्तार करना चाहा, तो वह रोने लगा है और कहा कि मेरे दिल में तो मुसलमानों की भलाई के सिवा और कुछ है नहीं, मैं तो सिर्फ अमीरूल मोमिनीन का ध्यान इस ओर खींचना चाहता है कि गर्वनर जुल्म कर रहा है। काकाअ ने तम्बीह कर-उसे छोड दिया।
जाहिर में तो वो लोग खामोश हो गये, लेकिन दिल में तै कर लिया कि अब अपनी मुहिम और तेज करना है।
इसके बाद इन शरारतपसंदों ने पूरे मुल्क के शरारत पसंदों को इत्तिला भिजवाई के मदीना पहुंचो ताकि वहां हजरत उस्मान से मांग की जाए कि जालिम गवर्नर हटायें जायें।
हजरत उस्मान को इसकी इत्तिला मिली तो उन्होंने कुछ लोगों को लगा दिया कि यह देखें कि ये लोग क्या चाहते हैं? बातों-बातों में उन लोगों ने मालूम कर लिया कि इन लोगों का मकसद सिर्फ हजरत उस्मान को बदनाम करना है।
मदीना से वापस जा कर फिर ये जनता को बताएंगे कि हमने हर मुम्किन तरीके से हालात सुधारने की कोशिश की मगर अब अमीरूल मोमिनीन जिद पर अडे हुए हैं, हम फिर भारी तायदाद में मदीना आकर अमीरूल मोमिनीन से मांग करेंगे, कि वह खिलाफत से अलग हो जाएं। अगर उन्होंने हमारी बात मान ली तो बेहतर, वरना हमें उन्हें कत्ल कर देने में भी कोई झिझक न होगी।
हजरत उस्मान को पूरी खबर दी गयी। हजरत उस्मान ने एक आम जल्सा बुलाया, उसमें तमाम सहाबी जमा हुए उन लोगों के सामने पूरी रिपोर्ट रखी गयी। सबकी यही राय थी, इन शरारत पसंदों को कत्ल कर दो। अगर हजरत उस्मान रजि. उन लोगों की बात पर अमल कर लेते तो शायद बाद के फित्ने न पैदा होते, लेकिन उनकी नर्मी तो सभी जानते थे। कहा, एक बार फिर हम इनको माफ कर देंगे और हर तरह कोशिश करेंगे कि वे अपने मंसूबे से रूक जाएं।
इसके बाद अमीरूल मोमिनीन मिंबर पर चढे और उन दंगाईयों के इल्जामों का जवाब दिया और सफाई पेश कर दी। लोग पूरी तरह मुत्मईन हो गये और खुले आम कहा कि ये सब इल्जाम बेहूदा है और शरारत की वजह से बनाये गये हैं।
इधर हजरत उस्मान का यह हाल था, उधर शरारत पसन्द इसे अपनी कामियाबी समझ रहे थे। उन्होंने इरादा किया कि इस बार वे हजरत उस्मान को वह मजा चखाएंगे कि माफ करना ही भूल जाएंगे।
गरज फिर गिरोहों में जमा हो इन्होंने शहर मदीना को घेर लिया और हजरत उस्मान से सख्ती से मांग की कि वह खिलाफत से अलग हो जाएं। उनकी यह पूरी मांग बे-दलील थी। हजरत उस्मान ने इस मांग के आगे सर झुकाने से इंकार कर दिया।
फिर इन बलवाईयों ने हजरत उस्मान रजि. का मकान घेर लिया, मकान में घुस गये। हजरत उस्मान रजि. अपने कमरे में कुरआन पाक की तिलावत फरमा रहे थे। तिलावत करते ही में उनको एक जालिम ने आगे बढ कर शहीद कर दिया।
इन्नानिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन.
गरज यह कि 18 जिलज्जिा सन् 35 हिजरी मुताबिक 17 जून 656 ई. को बयासी साल की उम्र में 12 साल खिलाफत करते हुए यह पाक हस्ती जालिमों के हाथों से अपने रब की तरफ रूजू कर गयी।