तारीखे इस्लाम

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(43वीं किश्त)
चैथे खलीफा हजरत अली रजि.
नाम अली बिन अबू तालिब था। हजरत मुहम्मद सल्ल. ने आपको अबुल हसन और अबू तुराब की उर्फियत से खिताब फरमाया। आपकी वालिदा का नाम फातिमा बिन्ते असद बिन हाशिम था।
हजरत अली कर्रमल्लाहु वज्हहु आंहजरत अलैहि व सल्लम के चचेरे भाई थे और दामाद भी। आप का कद दर्मियानी था, बदन दोहरा था, सर के बाल किसी कदर उड.े हुए, बाकी पूरे जिस्म पर बाल, लम्बी और घनी दाढी, गेंहुआं रंग था।
हजरत अली रजि. सबसे पहले इस्लाम लाने वालों में से थे। आप उन लोगों में से हैं, जिन्होंने कुरआन मजीद को जमा कर के हजरत मुहम्मद सल्ल. की खिदमत में पेश किया था। आप बनी हाशिम में सबसे पहले खलीफा थे।
हजरत मुहम्मद सल्ल. ने जब मक्का से मदीने को हिजरत की तो आप को मक्का में इसलिए छोड गये कि तमाम अमानतें लोगों को पहुंचा दें, प्यारे नबी सल्ल. के इस हुक्म को पूरा करने के बाद आप भी हिजरत करके मदीना पहुंच गये। सिवाए तबूक की लडाई के आप तमाम लडाईयों में आंहजरत सल्ल. के साथ शरीक हुए। तबूक की लडाई को जाते वक्त आपको हजरत मुहम्मद सल्ल. मदीने का आमिल यानी अपना नायब बना गए थे। उहूद की लडाई में हजरत अली कर्रमल्लाह वज्हहू के मुबारक जिस्म पर सोलह घाव आए थे। खैबर की लडाई में आंहजरत सल्ल. ने झंडा आपके हाथ में दिया था और पहले से फरमा दिया था कि खैबर आपके हाथ पर जीता जाएगा।
आप को अपना नाम अबू तुराब बहुत पसंद था। जब कोई शख्स इस नाम से आपको पुकारता था, तो आप बहुत खुश होते थे। इस नाम के पडने की वजह यह है कि एक दिन आप घर से निकल कर सो गये, आंहजरत सल्ल. मस्जिद में तश्रीफ लाए और हजरत अली रजि. को उठाया तो जिस्म से मिट्टी पोंछते जाते थे और फरमाते जाते थे कि अबू तुराब उठो।
एक बार हजरत मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया कि जिस का मैं दोस्त हूं, उसके अली रजि. भी दोस्त हैं। फिर फरमाया कि इलाही! जो शख्स अली रजि. से मुहब्बत रखे तू भी उससे मुहब्बत रख और जो अली रजि. से दुश्मनी रखे, तू भी उससे दुश्मनी रख।
हजरत उस्मान रजि. की शहादत के बाद
अमीरूल मोमिनीन हजरत उस्तान रजि. के कत्ल के बाद मदीने पर भय छा गया। कोई सोच भी नहीं सकता था कि ये जालिम इतनी बेदर्दी और जुल्म का खेल खेलेंगे। वे लोग जिन्होंने जुर्म किया था, वे अब शर्मिंदा थे।
हजरत उस्मान के अजीज-रिश्तेदार मायूस हो कर मक्का चले गये। एक आदमी हजरत उस्मान की बीवी की कटी हुई उंगलियों को, जो बलवाईयों ने बचाते वक्त काट दी थीं, उस्मान के खून में रंगे हुए कुर्ते में लपेट कर दमिश्क जा पहुंचा और उन्हें अमीर मुआविया के सामने पेश करके खूब रोया और मदद चाही।
पांच दिन तक मदीना में बलवाईयों का तूफान मचा रहा, छठे दिन बलवाईयों ने मांग की कि किसी को खलीफा चुना जाए। हजरत अली रजि. पर भी डर छाया हुआ था। उन्होंने हजरत तल्हा या हजरत जुबैर रजि. की बैअत पर अपनी रजामन्दी जाहिर कर दी, मगर बाद में दोस्तों और साथियों के कहने पर खलीफा बनना मंजूर कर लिया।
फिर बागी मदीना से चले गये।
इन बागियों के चले जाने के बाद लोगों ने चीख व पुकार से आसमान सर पर उठा लिया, हर तरफ चीख व पुकार होने लगी। पूरी कौम ने मिल कर फैसला किया था कि अमीरूलमोमिनीन के कातिलों से कत्ल का बदला लिया जाए। हजरत तल्हा व जुबैर रजि. ने हजरत अली पर बहुत जोर डाला, मगर हजरत अली यह फरमाते, मैं तुम्हारी बात सही समझता हूं, मगर बेबस और मजबूर हूं, बागी हमारे कब्जे और अख्तियार से बाहर हैं, कुछ इंतिजार करो, खुदा हमारी रहनुमाई करेगा।
अगर उस वक्त इस बदला लेने की तज्वीज पर फौरन गौर करके कोई असली कार्रवाई की जाती तो यह भरोसे के साथ कहा जा सकता है कि बाद के कडवे और नागवार वकिए न होते।
सबसे पहला काम
सबसे पहला काम जो हजरत अली रजि. ने करना चाहा, वह सूबों के गवर्नरों की तब्दीली का था। लोगों ने मश्विरा दिया कि अभी आप इस काम को न करें। जब पूरा मुल्क आप की बैअत कर ले, फिर आप यह सब कदम उठा सकते हैं, मगर हजरत अली इस पर तैयार न हुए। हजरत मुआविया रजि. की गवर्नरी भी वह खत्म करना चाहते थे। हालांकि बडा खतरनाक काम था।
उन्होंने दो खत एक अमीर मुआविया के नाम और दूसरा अबू मूसा गवर्नर कूफा के नाम रवाना किये। अबू मूसा ने अपनी इताअत का पैगाम अमीरूल मोमिनीन के खत के जवाब में भेज दिया, अमीर मुआविया ने कोई जवाब न दिया।
दर्मिश्क की मस्जिद के आंगन में अमीर मुआविया रजि. ने हजरत उस्मान रजि. का खून से भरा हुआ कुरता एक झंडे पर लटका रखा था। उन की बीवी की कटी हुई उंगलियां मस्जिद के आंगन में पडी थीं। इन चीजों को देख-देख कर लोगों की बेचैनी बढ रही थी, वे कातिलों से बदला लेना चाहते थे और बार-बार अमीरूल मोमिनीन से मांग करते थे कि कातिलों से फौरन बदला लिया जाए।
बहरहाल वह दूत जो अमीरूल मोमिनीन का खत अमीर मुआविया रजि. के नाम लाया था, वह हर रोज जवाब मांगता था। आखिर कुछ मुद्दत बीत जाने के बाद अमीर मुआविया ने एक सादा कागज, जिस पर कुछ न लिखा था, लिफाफे में बंद करके अपने आदमी के हाथ उस दूत के साथ हजरत अली रजि. की खिदमत में भेज दिया।
हजरत अली को देख कर ताज्जुब हुआ। उन्होंने दूत से जानना चाहा। दूत ने पूरी सूरत वहां की बता दी। और यह भी कि लोगों का ख्याल है कि इस कत्ल में आप का भी हाथ है।
हजरत अली परेशान भी हुए और गुस्से से कांप भी रहे थे। आपने उसी हालत में फरमाया, वतन के सपूतों! अपने हथियारों से तैयार हो जाओ।
चार हजार आदमी फौरन तैयार हो गये और अमीर मुआविया के खिलाफ बगैर सोचे-समझे जंग का एलान कर दिया।
हजरत तल्हा और हजरत जुबैर रजि. ने हालात का अंदाजा लगा कर मदीना से बाहर चले जाने की ठान ली और उमरे की गरज से मक्का चले आये। (क्रमशः)