(46वीं किश्त)
चैथे खलीफा हजरत अली रजि.
अबू मूसा ने जवाब दिया कि इस मांग करने से अमीर मुआविया हजरत उस्मान के जानशीन नहीं हो सकते।
गरज यह कि हर पहलू से बहस हुई, लेकिन किसी नतीजे पर न पहुंच सके। बस राय बनी तो यह कि हजरत अली अगर खलीफा न रहें तो फित्ना व फसाद रूक सकता है, लेकिन फिर कौन हो? इस पर एक राय नहीं बन सकी।
बगावत की लहर
जब हजरत अली ने सरपंच तै कर लिए तो उनकी फौज में एक जमाअत इस किस्म की पैदा हुई जो सरपंचों को बिल्कुल पसन्द न करती थी। इन लोगों ने हजरत अली की फौज से अलग होकर अपना इंतिजाम कर लिया। इस तरह एक बागी फौज तैयार हो गयी जिन का नारा था फैसला खुदा के हाथ है, उनका उसूल था कि किसी बादशाह या खलीफा की जरूरत नहीं है, मुसलमानों पर हुकूमत एक मज्लिस के जरिए होनी चाहिए। ये निकलने वाले खारजी कहलाये।
हजरत अली रजि. ने अपने चचेरे भाई इब्ने अब्बास रजि. को खारजियों के सरदार के पास भेजा कि उनसे बात करके उन्हें सीधे रास्ते पर लायें। मगर कोई नतीना न निकला।
इसके बाद हजरत अली रजि. ने उनके सरदार को समझाया, उनकी बातों का उन पर अच्छा असर पडा। उन्होंने हजरत अली रजि. की बातें मान लीं और अपना कैम्प तोड कर अपने-अपने घरों को चले गये।
पंचों का फैसला आते ही उन्होंने हजरत अली के विरोध पर कमर कस लिया। फिर गवर्नर ने उन्हें बसरा से निकाल दिया। ये सब कूफा की पार्टी से जा मिले।
सरपंचों के फैसले के बाद हजरत अली रजि. ने अमीर मुआविया रजि. पर फिर से हमले की तैयारी शुरू कर दी। एक बडी फौज तैयार हो गयी। अभी वह शाम की तरफ चले ही थे कि उन्हें पैगाम पहुंचा कि खारजियों ने कत्ल व गारत से मुल्क में बहुत बुरी तरह अशांति फैला रखी है। अगर इसकी रोक थाम न की गयी तो खतरा यह है कि यह फित्ना कोई और रंग न अख्तियार करले। इन लोगों को इसी हालत में पीछे छोड कर जाना मुनासिब नहीं। हजरत अली रजि. को यह राय पसंद आयी और वह बजाए शाम देश के दज्ला को पार करके नहरवान जा पहुंचे, खारजियों को पैगाम भिजवाया कि हथियार डाल कर फौरन इतायत कर लो।
बात-चीत का सिलसिला कई दिन तक चला, कुछ तो हजरत अली रजि. के साथ हो लिए, कुछ मुकाबले पर उतर आये, यहां तक कि मंुंह की खायी। कुछ भाग गये और कुछ मारे गये।
जो भाग गये, छिपे तौर पर बगावत फित्ना-फसाद फैलो लगे, अगरचे उन्हें फिर दबा दिया गया, लेकिन मौका पाते ही वे फिर सर उठाने लगते।
इन तमाम मुसीबतों से हजरत अली रजि. कुछ परेशान हो गये। इन हालात में वह हजरत मुआविया रजि. का क्या मुकाबला करते, सिवाए इसके लिए कि एक लम्बी मुद्दत तक खत व किताबत चली, यहां तक कि दोनों में सुलह हो गयी कि वे एक दूसरे के इलाके में किसी किस्म का दखल न देंगे, बल्कि एक दूसरे को अपना मित्र समझेंगे।
हजरत अली रजि. शहीद कर दिये गये
हजरत अली और अमीर मुआविया में सुलह क्या हुई कि खारजियों के सब मंसूबे फेल हो गये। अब उनकी कोशिश हो गयी कि इन दोनों की हुकूमतों का खात्मा कर दिया जाए। इन में से बहुत से मक्का-मदीना जा कर बस गये।
हालात पर वे बराबर गौर करते रहे, यहां तक कि एक दिन वे इस नतीजे पर पहुंचे कि कुछ जान पर खेलने वाले ऐसे तैयार किए जाएं जो इन दोनों का खात्मा कर दें। साथ ही अम्र की भी जान लें कि उनका भी बहुत असर था। उन्होंने अपनी तलवारों को तेज जहर में बुझाया और कुरआन को हाथ में लेकर कसम खाई कि या तो वे अपना फर्ज अदा करेंगे या इस कोशिश में अपनी जान गंवा देना पसंद कर लेंगे। इस काम के लिए जुमा का दिल तै हुआ।
इत्तिफाक कहिए या कुदरत का खेल कि उस जुमा को हजरत अम्र बीमार पड गये, मस्जिद न आये। उनकी जगह उनके नायाब ने नमाज पढायी और कातिल के हाथों शहीद हुए। अमीर मुआविया रजि. बुरी तरह घायल हुए।
अमीरूलमोमिनीन हजरत अली का कत्ल एक आदमी इब्ने मुल्जिम के सुपुर्द हुआ। उसके साथ कातिल दो और थे, जिन्होंने भी अपनी तलवारों को जहर में बुझाया, और जान को हथेली पर रख कर मस्जिद के दरवाजे में जा छिपे, जहां से हजरत अली रजि. गुजरा करते थे।
जैसे ही हजरत अली मस्जिद के आंगन में दाखिल हुए, इन तीनों ने एक साथ उन पर हमला कर दिया। एक कातिल ने अमीरूल मोमिनीन के बाजू को घायल किया, दूसरे ने आप की टांगों पर वार किया, इब्ने मुल्जिम ने सर पर वार करके उन्हें बहुत बुरी तरह घायल कर दिया। इब्ने मुल्जिम को लोगों ने गिरफ्तार कर लिया, एक साथी की तो वहीं बोटी-बोटी नोच ली गयी, मगर दूसरा भाग गया।
अमीरूल मोमिनीन हजरत अली रजि. को उन के मकान पर ले गये। कातिल इब्ने मुल्जिम उनके सामने पेश किया गया। उन्होंने बहुत नर्मी से उससे बातें कीं। उसकी तीखी बातों का जवाब बडी नर्मी से दिया। किसी किस्म का गुस्सा या जोश जाहिर न किया, बल्कि अपने बेटे हसन रजि. से फरमाया, इब्ने मुल्जिम की अच्छी तरह हिफाजत करो कि वह कहीं भाग न जाए। मगर उससे किसी किस्म की सख्ती न करना, अगर मैं मर जाऊं तो कत्ल कर डालना।
घाव बहुत गहरा था। इसलिए हजरत अली रजि. के बारे में सभी मायूस हो गये। लोगों ने पूछा, क्या आप के बाद हजरत हसन रजि. को खलीफा बना दिया जाए।
आपने बडी सादगी से फरमाया, नहीं मैं इस का हुक्म नहीं देता, और न ही मना करता हूॅं, जिस तरह तुम लोगों की मर्जी हो करो।
अमीरूल मोमिनीन हजरत अली रजि. के कफन-दफन के बाद हजरत हसन रजि. ने कातिल को अपने रूब-रू तलब किया। उसने अपने नापाक इरादे का निडर होकर जिक्र किया। आखिर में उसे कत्ल कर दिया गया।