ममत्व आदमी की सबसे बड़ी कमजोरी भी है और शक्ति भी, जब हम किसी को अपना समझने लगते हैं तो प्रतिकूल परिस्थितियों में भी प्रसन्नता का अनुभव होने लगता है, यह ममत्व और आत्मीयता मनुष्य-मनुष्य को एक दूसरे से जोड़ती है। बेगाने भी अपने लगने लगते हैं।
मुझे इस जिले में तीन साल हो गये। इस दौरान काफी उतार चढ़ाव आये। प्रिय-अप्रिय घटनाओं का सामान करना पड़ा, पर एक बात जो हमेशा मुझे प्रेरणा और साहस देती रही- वह थी इस जिले से मिला ममत्व, लगता पूर्व जन्म के किसी संस्कार से ही इस जिले में आया होऊं।
मैंने हमेशा कोशिश की कि जिला प्रशासन में आम जनता की भागीदारी बढ़े जिले के अधिकारी कर्मचारियों को आम लोग अपने से अलग नहीं अपने बीच का ही समझें। अपना मालिक नहीं- अपना सहयोगी माने। अधिकारी कर्मचारी भी अपने को आम लोगों से अलग और ऊंचा न माने, एक परिवार जैसा वातावरण बने। कुछ हद तक मुझे सफलता भी मिली। अब गांव के लोग जब मेरे चेम्बर में आते हैं तो उनमें घबराहट नहीं होती। एक भरोसा, एक विश्वास सा उनके चेहरे पर झुलकता है कि उनकी बात गौर से सुनी जायेगी और जो संभव होगा वह किया जायेगा।
मेरे अधीनस्थ अधिकारी, कर्मचारी भी आम लोगों से दिल खोलकर मिलने लगे। जो व्यापक आत्मीयता मुझे लोगों से मिली उससे बड़े पुरस्कार की मैं कल्पना भी नहीं कर सकता।
पर यह तो दुनिया है- सभी तरह के लोग है- धन और स्वार्थ पूर्ति के पीछे कुछ लोग इतने दीवाने हो गये हैं कि उन्हें उचित अनुचित का ध्यान ही नहीं रहता। वे यह सोच नहीं पाते कि उनके कार्यों का समूचे समाज पर क्या असर पड़ेगा। अपने में ही घिरे रहते हैं।
इस बीच मुझे अपना तबादले की सूचना मिली। तीन साल के बाद स्वभाविक रूप से हो उच्च अधिकारी का तबादला हो जाता है। मैं भी मानसिक रूप से इसके लिये तैयार था। शीला से भी कह रखा था कि किसी भी सुहानी सुबह अपना काफिला किसी दूसरे पड़ाव को चल देगा। वह भी तैयारियोंं में व्यस्त रहने लगी थीं।
कभी-कभी वह मुझ से कहती कि यह जिला छोडऩे की कल्पना करते समय न जाने कैसा भावुक मन हो जाता है, ममता के जो बीज इस जिले में बोये थे वे ऊग आये हैं- कैसा उन्हें छोड़ा जायेगा समझ- ही नहीं पाती-
मेरा सामान बंधने लगा था। नये कलेक्टर भी आ गये थे। मैंने उनका इन्तजाम सर्किट हाउस में कर दिया। वे भी नई उम्र के थे और उनके दिल में भी कुछ कर गुजरने की तमन्ना थी। मेरे विषय में उन्हें प्रदेश की राजधानी से ही सारी जानकारी मिल गई थी। पहली मुलाकात में ही बोले ‘सर! यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे आपके बाद काम करने का मौका मिल रहा है। पूरी कोशिश करूंगा कि उन परम्पराओं को आगे बढ़ाऊं जिन्हें आपने अनेक विरोध और अवरोध झेलकर इस जिले में स्थापित किया है।Ó
मैंने कहा ब्रदर! सामाजिक परिवर्तन किसी एक व्यक्ति या पीढ़ी के द्वारा नहीं होता है यह तो सतत्ï चलने वाली प्रतिक्रिया है। मैं अकेला इस तंत्र को ठीक नहीं कर सकता- न तो इतनी क्षमता है और न ही यह संभव है। पर हां एक आदर्श एक अच्छे भविष्य की कल्पना करके उसे साकार करने के प्रयास अवश्य किये जा सकते हैं। राम राज्य लाया तो नहीं जा सकता किन्तु उसकी ओर कदम तो बढ़ाये जा सकते हैं। मुझे खुशी है कि तुम्हारे मन में भी मेरे समान विचार है।
आज का माहौल इतना खराब हो गया है कि नैतिकता, सिद्घांत आदर्श की बातें बेमानी बनती जा रही हैं। जो लोग उन्हें पकड़े हैं उन्हें लोग पिछड़ा समझते हैं पर वास्तविकता यह नहीं है, अभी भी नैतिकता का सहारा ही मनुष्य को आपस में बांधे हैं। हां इनकी संख्या जरूर कम होती जा रही है जिसे रोकने का प्रयास हमें करना होगा।
जीवन में सदा काले पक्ष को देखना या उसे भी सच मानना हमारे मनों में निराशा उत्पन्न करने का कारण बनता है। जीवन में कुछ अच्छा भी है उस पर विश्वास करने से विपरीत स्थितियों में भी प्रसन्नता पूर्वक रहकर अपने चारों तरफ के वातावरण को भी खुशहाल बनाया जा सकता है।
मैं इन्हीं विचारों में खोया था कि चपरासी ने खबर दी कि मेरा सामान ट्रक पर लद गया तथा कार जाने के लिये तैयार खड़ी है।
मुझे विदा देने वाले लोग भी मेरे बंगले में इक_ïे हो गये थे। मैं कमरे से बाहर निकला तो लोगों ने फूलों से मुझे लाद दिया। मेरा मन भावाकुल हो उठा- स्नेह से मेरी आंखें छल-छला उठीं, कहने को मेरे पास कोई शब्द नहीं थे। मैं चुपचाप हाथ जोड़े हुए सबसे विदा लेकर अपनी कार में बैठ गया।