नवाब हमीदउल्ला खान 8 रबीदल अव्वल सन 1312 हि. मुताबिक 9 दिसम्बर 1894 को बरोज रविवार सुबह 6 बजे पैदा हुए। अर्थात एक सूरज आसमान से निकल रहा था और दूसरा भोपाल रियासत को रोशन करने के लिए नमूदार हो रहा था। नवाब सुलतान जहां बेगम ने हमीद उल्ला खान की पैदाइश पर कहा था-
’खुदा वंद करीम ने जो सबसे बड़ी तसल्ली देने वाला , मेरे गमजदा दिल को तसल्ली देने अपने फैज व करम का फरिश्ता भेज दिया है। मैंने इस बच्चे को बिलकीस जहां बेगम व आसिफ जहां बेगम का बदल कामिल समझा।‘
इसमें शक नहीं कि खुदा वंद करीम का फजल और इसकी रहमतें विभिन्न सूरतों में तरह-तरह से जलवागर होती रहती हैं जो शुमार में नहीं आ सकतीं। इससे पूर्व नवाबजादा नसरूल्ला खान और उबैदुल्ला खान की पैदाइश पर ऐसे अलफाज नहीं कहे गये। सरकारे आलिया के बड़े साहबजादे (पुत्र) की शिक्षा-दीक्षा उनके पति नवाब सुल्तान दूल्हा के देहांत से पहले ही पूरी हो चुकी थी। जो उस समय के अनुसार पूरी थी।
नवाब हमीदउल्ला खान की उम्र उनके वालिद (पिता) के इंतकाल के वक्त केवल 6 साल की थी और उनकी मां को रियासत की बागडोर संभाले हुए अभी ज्यादा वक्त नहीं हुआ था। रियासत के कामकाज और जिम्मदारियां, शौहर के इंतकाल, कमसिन बच्चे की परवरिश व तालीम जैसे मसले (समस्याएं) सामने थे। ऐसे हालात में हमीदउल्ला खान की शिक्षा-दीक्षा शुरू हो गई।
कुरआन शरीफ और उर्दू की तालीम (शिक्षा) स्वयं नवाब साहिबा ने अपने जिम्मे रखी और जब अन्य विषयों के अध्ययन का समय आया तो विषयों से संबंधित ज्ञानी शिक्षकों की व्यवस्था की गई। इनमें एक शिक्षक लियाकत अली थे जो बाद में चीफ जस्टिस के पद तक पहुंचे। दूसरे शिक्षक वली मुहम्मद साहब थे जो बाद में नवाब साहिबा के प्राईवेट सेक्रेटरी के पद पर नियुक्त किये गये। अंग्रेजी की शिक्षा के लिए एक अंग्रेज प्रोफेसर मिस्टर बेन एम.ए. आक्सन की सेवाएं ली गईं। उनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय एलेक्जेण्ड्रिया स्कूल में हुई। यहां अध्ययन करते हुए उन्हें आम लोगों से संबंध रखने और इंसानी भलाई जैसे कामों का अनुभव हुआ। क्योंकि उस समय तक एलेक्जेण्ड्रिया स्कूल में कोई नवाबजादा या जागीरदार अपने बच्चे का प्रवेश कराना पसंद नहीं करते थे, केवल आम जनता के बच्चे ही इस स्कूल में पढ़ा करते थे।
जब उच्च शिक्षा के करीब पहुंचे तो मोहम्मडन कालेज में प्रवेश दिया गया। क्योंकि नवाब साहिब के राय के अनुसार मोहम्मडन कालेज अलीगढ़ से बेहतर और कालेज उनकी पढ़ाई के लिए नहीं हो सकता था। यह कालेज हिन्दुस्तान के मुसलमानों की उम्मीद का केन्द्र था।
नवाबजादा हमीदउल्ला खान की शिक्षा पूरी हुई, अलीगढ़ से ग्रेजुएट हुए और जब सत्तारूढ़ हुए तो उस समय 500 रियासतों में से अकेले ग्रेजुएट शासक थे। अलीगढ़ में पढ़ने के बावजूद नवाब साहब का रूझान अंग्रेज दोस्ती के स्थान पर कांग्रेस के नेताओं की ओर रहा; अध्ययन के दौरान चैधरी खलीक अहमद, तम्मदुक हुसैन शेरवानी, रफी अहमद किदवई, गोविंद वल्लभ पंत, मोतीलाल नेहरू, डा. मुख्तार अहमद अंसारी, जवाहरलाल नेहरू, कर्नल रहमान, हसन हयात, शोएब कुरैशी और सबसे बढ़कर महात्मा गांधी से निकटता रही। शेख अब्दुल्ला और डा. जाकिर हुसैन भी अलीगढ़ में नवाब हमीदउल्ला खान के जानने वाले बन गए थे।
स्वयं किसी राजनीतिक आंदोलन में तो भागीदार नहीं बनें, लेकिन आंदोलनों में भाग लेने वाले लोगों से इनके करीबी ताल्लुकात रहे और पढ़ाई के दौरान आम आदमी की समस्याओं, जनता से हमदर्दी आदि भावनाओं का विकास उनमें होता गया।
नवाब सुलतान जहां बेगम ने अपने साहबजादों को जिस तरह से काबिल बनाने का इरादा किया था, उसमें वो कामयाब रहीं और इसी के तहत नवाब नसरूल्ला खान को रियासत में वित्त एवं वन मंत्री बनाया गया। दूसरे पुत्र जनरल उबैदुल्ला खान के रूझान को देखते हुए उन्हें फौजी प्रशिक्षण देकर रियासत का सिपहसालार बनाया गया।
हालांकि उस समय तक किसी को भी यह गुमान न था कि नवाब साहिबा के बाद भोपाल रियायत की बागडोर नवाब हमीदउल्ला खान के हाथों में आ जायेगी। लेकिन कुदरत को यही मंजूर था और इसलिए नवाब साहब की तरबियत एलेक्जेण्ड्रिया स्कूल से ही शुरू हो गई थी। नवाब साहब सबसे पहले म्यूनिस्पल के चैयरमैन नियुक्त किये गये ताकि जनता के सदस्यों के साथ मिल कर काम करने का अनुभव मिल सके। साथ ही साथ शहर के तमाम इंतेजामात आदि का भी अनुभव हो।
इसके बाद नवाब हमीदउल्ला खान को पूरी रियासत का दौरा करने को कहा गया। चार महीने तक पूरी रियासत का दौरा करके हर एक बात, हर एक समस्या और समस्त विभागों की जांच-पड़ताल कर एक रिपोर्ट नवाब साहिबा के सामने पेश की। इस रिपोर्ट में काम-काज में जरूरी बदलाव करने की भी राय दी गई थी। इस दौरान जहां कहीं भी आम जनता की समस्या सामने आई, उनका समाधान करवाया।
नवाबजादा हमीदउल्ला खान ने अपने म्यूनिस्पल की चैयरमैनी और चीफ सेक्रेटरी के पदों पर रहते हुए अपनी भरूपर योग्यता का प्रदर्शन किया और जो काम जिस समय करना होता था वो समय पर हो जाता था।
1922 में तंजीम जदीद के सिलसिले में स्टेट कौंसिल की स्थापना की गई तो नवाब साहिबा ने हमीदउल्ला खान को इसका अध्यक्ष बनाया और पांच सदस्योें के अलावा दूसरे पु+त्रों को भी शामिल किया। जनरल उबैदुल्ला को रक्षा एवं सैन्य विभाग, हमीदउल्ला खान को शिक्षा एवं सामान्य प्रशासन विभाग के अतिरिक्त कानून व न्याय विभाग भी सौंपे गये। रियासत की तंजीम जदीद के संबंध में जनता को सम्मिलित करने की खातिर स्टेट कौंसिल और लेजेस्लेटिव एसेम्बली का गठन भी उनके लोकतंत्र समर्थक होने का सबूत था।
नवाब हमीदउल्ला खान ने अपने शासनकाल के दौरान भोपाल के लोगों के लिए बहुत काम किये और भारत की स्वतंत्रता के बाद जब रियासतों के विलय को लेकर पूरे दूश में अफरा-तफरी का माहौल था। बिना किसी खून-खराबे के भोपाल रियासत को भारतीय गणतंत्र को सौंप कर उन्होंने भोपाल की जनता को उस समय पूरे देश में फैली अराजकता से बचा लिया। इसके बाद भोपाल को मध्यप्रदेश की राजधानी बनवाने में भी नवाब हमीदउल्ला खान का बहुत बड़ा योगदान रहा। उन्होंने इसके लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री पंरु जवाहरलाल नेहरू से अपने पुराने संबंधों के आधार पर भोपाल को राजधानी बनाने का आग्रह किया और सरकारी कार्यालयों के लिए अपनी रियासत की कई इमारतों को उन्होंने बिना किसी लालच के प्रदेश की सरकार को सौंप दिया;
नवाब हमीदउल्ला खान के नाम से भोपाल का सबसे बड़ा अस्पताल हमीदिया अस्पताल, हमीदिया कालेज, हमीदिया बाॅयज स्कूल, हमीदिया गल्र्स स्कूल आदि बने हुए हैं। नवाब हमीदउल्ला खान के दौर में भोपाल में काफी तरक्की केे काम हुए और अवाम दोस्ती और समस्याओं से रूबरू होकर नवाब साहब ने आम जनता के दिलों में अपने लिए एक खास जगह बनाई। आज भोपाल की नई पीढ़ी भोपाल रियासत के आखिरी नवाब हमीदउल्ला खान के बारे में अधिक नहीं जानती। इसके लिए जरूरी है कि उनकी शख्सियत वगैरह के बारे में लेख छापे जाएं ताकि यहां के नागरिक भोपाल के इतिहास और यहां के जनप्रिय शासक नवाब हमीदउल्ला खान के व्यक्तित्व से रूबरू हो सकें।