असगर गौंडवी

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असगर गोंडवी का असली वतन गोरखपुर था, परन्तु इनके पिता मौलवी तफज्जुल हुसैन खान जो कानूनगो थे, नौकरी करने के सिलसिले में काफी समय तक गोंडा में रहे। इसलिए आप असगर गोंडवी के नाम से मशहूर हुए। आपका असली नाम असगर हुसैन था। प्रारंभिक शिक्षा घर पर हुई। इसके पश्चात शासकीय हाईस्कूल गोंडा में प्रवेश लिया। परंतु बाद में घरेलू परेशानियों के कारण पढाई छोडना पडी। स्वयं पढ कर और गौर व फिक्र के जरिये उन्होंने अच्छी खासी काबलियत पैदा कर ली।
असगर ने अपने शुरूआती कलाम पर इस्लाह मुंशी खलील अहमद वज्द बिलग्रामी से ली। असगर एक मुतक्की और परहेज गार इंसान थे। इसके बावजूद इनके मिजाज में रंगीनी और जराफत थी। इलाहाबाद में हिन्दुस्तानी अकेडमी में नौकरी के लिए काफी समय रहे, त्रैमासिक पत्रिका ‘हिन्दुस्तानी’ के सम्पादक रहे। 1936 में इलाहाबाद में इंतकाल हुआ। असगर के दो संकलन ‘सरोदे जिन्दगी’ और ‘निशाते रूह’ प्रकाशित हुए हैं। इनके लब व लहजे में एक मताउनत आमेज रंगीनी, जुबान व बयान में एक आलिमाना विकार और ख्यालात में पाकीजगी व लताफत पाई जाती है।
असगर गौंडवी की रचनाएं
मौजों का अक्स है खते-जामे-शराब1 में
या खून उछल रहा है रगे-माहताब2 में
वो मौत है कि कहते हैं जिसको सुकून सब
वो ऐन-जिन्दगी3 है, जो इज्तिराब4 में
दोजख5 भी एक जलवः-ए-फिरदौसे-हुस्न6 है
जो इससे बेखबर हैं, वही हैं, अजाब7 में
उस दिन भी मेरी रूह थी महवे-निशाते-दीद8
मूसा9 उलझ गए थे, सवालो-जवाब में
मैं इज्तिराबे-शौक कहूं, या जमाले-दोस्त10
इक बर्क11 है जो कौंध रही है नकाब में
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पास-ए-अदब12 में जोशे-तमन्नः लिये हुए
मैं भी हूं एक हुबाब13 में दरियः लिये हुए
रग-रग में और कुछ न रहा जुज14 खयाले-दोस्त
उस शोख को हूं आज सरापः15 लिये हुए
सरमायः-ए-हयात16 है हिर्माने-आशिकी17
है साथ एक सूरते-जेबा18 लिये हुए
जोशे-जुनूं में छूट गया गया आस्ताने-यार19
रोते हैं मंंुह में दामने-सेहरः लिये हुए
’असगर‘ हुजूमे-दर्दे-गरीबी में उसकी याद
आई है इक तिलिस्मी-तमन्नः20 लिये हुए
शब्दार्थः- 1-शराब के जाम में, 2-चंादनी, 3-सही जिंदगी, 4-बैचेनी, 5-नरक, 6-स्वर्ग की सुन्दरता की एक सूरत, 7-दुख, 8- दर्शन की खुशी में डूबा हुआ, 9-मोजिज एक पैगम्बर, 10- दोस्त की खूबसूरती, 11- बिजली, 12-सम्मान से, 13- बुलबुला, 14-सर से पैर तक, 15-जिन्दगी की पूंजी, 16-आशिकी का गम, 17- खूबसूरत चेहरा, 18-यार की चैखट, 19- अनोखी तमन्ना।