तारीखे इस्लाम

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(55वीं किश्त)
यजीद बिन अब्दुल मलिक
अबु खालिद यजीद बिन अब्दुल मलिक बिन मरवान अपने भाई सुलैमान बिन अब्दुल मलिक की वसियत के मुवाफिक हजरत उमर बिन अब्दुल अजीज रह. के बाद राज सिंहासन पर बैठा।
चार साल एक माह खलीफा रहकर 25 शाबान 105 हिजरी में 37 साल की उम्र में यजीद बिन अब्दुल मलिक का इंतकाल हो गया। उसकी वसीयत के मुवाफिक हिशाम बिन अब्दुल मलिक तख्ते खिलाफत पर बैठा।
हिशाम बिन अब्दुल मलिक
अबुल वलीद हिशाम बिन अब्दुल मलिक सन 72 हिजरी में पैदा हुआ। हिशाम बिन अब्दुल मलिक के जमाने में कैसर की फौजों को भी हराया गया।
यजीद बिन अब्दुल मलिक की वसीयत के मुवाफिक हिशाम के बाद वलीद बिन यजीद वली अहद था, लेकिन हिशाम की ख्वाहिश थी कि वलीद को हटा कर अपने बेटे को वली अहद बनाये। मगर हुकूमत के दूसरे सरदार चूंकि इस पर रजामंद नहीं थे, इसलिए अपने इरादे ेमें कामयाब नहीं हो सका।
6 रबीउस्सानी 105 हिजरी में साढे उन्नीस साल तक खलीफा रहने के बाद हिशाम बिन अब्दुल मलिक ने वफात पाई।
अबुल अब्बास वलीद बिन यजीद बिन अब्दुल मलिक बिन मरवान बिन हकम सन 90 हिजरी में पैदा हुआ। यजीद बिन अब्दुल मलिक की वफात के वक्त यह बहुत कम उम्र था। वलीद बिन यजीद ने खलीफा बनते ही बदले की कार्रवाईयों से अपने खानदान वालों और अक्सर लोगों को दुश्मन बना लिया।
20 जिलहिज्जा सन 125 हिजरी को कुछ दिन कम 6 महीने खिलाफत करके 35 साल की उम्र में ताऊन के मर्ज में वफात पाई।
इब्राहिम बिन वलीद बिन अब्दुल मलिक
अबु इस्हाक बिन वलीद बिन अब्दुल मलिक अपने भाई यजीद की वफात के बाद उसकी वसीयत के मुताबिक खलीफा हुआ।
वलीद ने बेटों हकम और उस्मान जिनको उसने वली अहद बनाया था को कैद कर सुलैमान बिन हिशाम ने कत्ल करवा दिया। मरवान बिन मुहम्मद बिन मरवान जीतता हुआ दमिश्क में दाखिल हुआ और हकम व उस्मान की लाशों को देख कर बहुत अफसोस किया। नमाज जनाजा पढ कर उसने लोगों से पूछा कि तुम किसको अपना खलीफा देखना चाहते हो। सबने एक राय होकर मरवान बिन मोहम्मद बिन मरवान बिन हकम के हाथ पर बैअत की।
इसके बाद इब्राहिम ने खुशी से मरवान के हक में खिलाफत से हाथ खींच लिया। इब्राहिम की खिलाफत सिर्फ दो महीने रही।
मरवान बिन मुहम्मद बिन मरवान बिन हकम
मरवान बिन मुहम्मद बनु उमैया खानदान का आखिरी खलीफा था, इसके लोग मरवानुल हिमार भी कहते थे। हिमार अरबी में सब्र करने वाले को कहते हैं। मरवान इसीलिए हिमार कहा जाने लगा क्योंकि उसकी खिलाफत का तमाम जमाना लडाईयों में गुजरा और उसने बडे सब्र के साथ इन हालात को झेला।
मरवान बिन मुहम्मद की खिलाफत का जमाना कुछ कम 6 साल है। मरवान सन 70 हिजरी या 72 हिजरी में जबकि उसका बाप मुहम्मद बिन मरवान जजीरे का गर्वनर था, पैदा हुआ था।
बनु उमैया का कत्ले आम अब्बासियों के हाथ
इस्लामी खिलाफत को अगर कोई कौम या खानदान अपनी विरासत समझे, वह सख्त गलती और जुल्म करता है। बनु उमैया ने अगर इस्लामी हुकूमत अपनी ही कौम और खानदन में बाकी रखना चाहा, तो यह उनकी गलती थी। बनु अब्बास या बनु हाशिम अगर इसको अपना हक समझते थे, तो यह उनकी भी गलती और नाइंसाफी थी, लेकिन चूंकि दुनिया में आमतौर से लोग इस गलती के शिकार हैं, इसलिए जो आदमी किसी लुटेरे से अपना माल वापस लेता है, वह अक्सर कत्ल-खून और ज्यादती कर बैठता है, लेकिन इस कत्ल व खून को बनु अब्बास ने बनु उमैया के हक में जिस तरह सही समझा, उसकी मिसाल किसी दूसरी जगह नजर नहीं आती।
बनु हाशिम के जुल्म व सितम का हाल यह था कि अगर किसी के बारे में यह मालूम हो जाता कि यह कबीला बनु उमैया से ताल्लुक रखता है, तो उसे कत्ल कर दिया जाता, ताकि इस खानदान की दुनिया से जडें खत्म हो जाएं। सूबों और शहरों के हाकिम जो आमतौर पर अब्बासी थे अपनी-अपनी जगह इस खोज में रहने लगे कि कहीं किसी बनु उमैया का पता चले और उसको कत्ल किया जाये। बनु उमैया के लिए कोई मकान, कोई गांव, कोई कस्बा, कोई शहर अमन की जगह न रहा और वर्षों उनकी खोज करके अब्बासी लोग कत्ल करते रहे।
बनु उमैया का एक शख्स अब्दुर्रहमान बिन मुआविया बिन हिशाम शिकार होते-होते बाल-बाल बच गया और भाग कर मिस्र व कीरवान होते हुए उन्दुलुस पहुंच गया। उन्दुलुस चूंकि अब्बासियों की दावत के असर से बडी हद तक पाक था और वहां बनी उमैया के हामी ज्यादा तादाद में मौजूद थे, इसलिए उन्दुलुस पहुंचते ही इस मुल्क पर कब्जा हो गया और एक ऐसी सल्तनत व खिलाफत कायम करने में कामयाब हुआ, जिसको अब्बासी हमेशा रश्क की निगाहों से देखते रहे और उसकी हुकूमत का कुछ न बिगाड सके।