(दूसरी किश्त)
रसूल के जमाने में शरई कानून के श्रोत
रसूल के जमानरे में शरई कानून के दो श्रोत थे। बह-ई-इलाही तथा इज्तिहादे रसूल-जब कभी किसी धटना या कजीया या सवाल (प्रश्न) या फतवा होता तो कानून की हाजत होती तो अल्लाह वहई के द्वारा अपने रसूल को एक आयत या कई आयतों से अवगत करा देता जिस में उस का आदेश होता जिसे रसूल मुसलमानों को पहुंचा देते, यह कानून की आवश्यकता पडती लेकिन ’’बहई‘‘ न आती रसूल के पास तो अपनी समझ से किसी प्रश्न या कजिया में फैसला दे देते यह भी शरई कानून होता जिसका पालन करना अनिवार्य है क्योंकि रसूल जो जेरे साया होता है उसका कोई आदेश भी अल्लाह के अनुमति के बगैर नहीं होता। गोया अल्लाह इस बात से राजी है। यही कारण है कि जब कभी आपने कोई फैसला दिया गया। कुरआन मे एहकाम (आदेशों) की आयतें जो है उसके नाजिल होने के पीछे कोई न कोई कारण आप मौजूद पायेंगे। जैसा कि कुरआन के व्याख्या करने वाले विद्वानों ने उल्लेख किया है। (मुफस्ेस्त्रीन) प्रत्येक कुरआनी हुक्म किसी न किसी घटना पर (जब कानून की आवश्यकता हुयी) आया है। यह वास्तविकता अल्लाह के इस फरमान से पुष्ट होता है। आप से (रसूल) हराम महीनो के बारे मे पूछते हैं। लडाई झगडा करने के बारे मे आप कह दीजिये इस में (झगडा-लडाई) बहुत बडा पाप है और अल्लाह का फरमान आप से (रसूल) शराब और जुआ के बारे पूछते हैं कह दीजिये यह दोनो बहुत बडा पाप है और लोगो को लाभ हैं और इन दोना का पाप दोनों के लाभ से बहुत अधिक है। इसी प्रकार पति पत्नी के आरोपात्मक पहलू पर ’’कज्फ‘‘ (आरोप) का हद और इसी प्रकार किसी की छोडी हुई सम्पत्ति के बारे में झगडा होने पर विरासत के अहकाम जारी हुए हैं। इसके कारण पति पत्नी के बीच ’’लेआन‘‘ का हुक्म दिया गया। (लेआन कहते हैं कि जब पति पत्नी पर बदचलनी का आरोप लगाये तो दोनों यह कहे कि यदि मैं सच्चा न हुआ तो मुझ पर अल्लाह की लानत हो) इनके अलावा नुजूले अहकाम के कारण हैं। जो भी एहकाम की हदीसें जिन को मुहद्विसीन ने बयान किया है। इस से स्पष्ट हो जाता है कि रसूल का हर हुक्म जो कि अपने इज्तिहाद से किया है वह किसी कजीया का फैसला हो या किसी घटना पर फत्वा हो या किसी सवाल का उत्तर हो वह हुक्म जिस भांति कुछ सहाबा से बयान किया गया है लोगों ने पूछा ऐ अल्लाह के रसूल हम लोग खारे समुद्र में यात्रा करते हैं हमारे पास मीठा पानी इतना नहीं होता कि वजू कर सकें। क्या समुद्र के पानी से वजू कर सकते हैं? रसूल ने फरमाया उसका पानी पाक है और उसकी मुर्दा म ली हलाल हैं‘‘
रसूल के वक्त में जितने भी अहकाम आये सब का श्रोत ’’वहई इलाही‘‘ या इज्तिहाद नबवी है। इस के जारी होने का आधार किसी आवश्यकता के पेश आने से शरई कानून की हाजत थी। वहई इलाही द्वारा जो आदेश अहकाम रसूल प्राप्त करते उस को लोगों तक पहुचाना तथा उसकी व्याख्या करना और उसको नाफिज करना था जैसा कि अल्लाह का फरमान है ’’ऐ रसूल पहुंचा दीजिये जो कुरआन आपके रब की ओर से उतारा गया है यदि तुमने ऐसा न किया तो अपनी रिसालत को न पहुंचाया‘‘ कुरआन और अल्लाह का फरमान और हमने तुम्हारी ओर जिक्र (कुरआन) उतारा है ताकि तुम लोगों के सामने (खोल खोल कर) बयान कर दो जो उन की तरफ उतारा गया‘‘ ’’कुरआन‘‘।
द्वितीय श्रोत इज्तिहाद नबवी
कभी इलहामे इलाही द्वारा होता यानि जब रसूल इज्तिहाद फरमाते तो अल्लाह इलहाम के जरिये हुक्म की पहचान फरमा देता और कभी-कभी समस्या का समाधान किसी हुक्म से समानता पर करते क्योंकि मसलेहत उसी को चाहती और शरीअत की अंतर आत्मा का तकाजा यही होता। इज्तिहादी अहकाम जिन को अल्लाह रसूले को इल्हाम द्वारा बताता वह दर हकीकत अहकामे इलाही होते। रसूल केवल अपने आचरण और बात से पेश कर देते और वह इज्तिहादी अहकाम जिन के बारे में कोई इल्हाम न होता रसूल अपनी सूझ-बूझ से करते। यदि वह उचित न होता तो उस पर अल्लाह की ओर से मार्ग दिखलाया जाता। इस का उदाहरण वद्र में जो बंदी बनाये गये थे। (यह स. 2 हिज्री में मक्का वालों और मुसलमानों के बीच हुई थी। मक्का के लोग चढाई करके बद्र नामक जगह पर एकत्रित हुए थे. ये मदीना से थोडे फास्ले पर है)। उन के बारे में कोई कुरआनी हुक्म न अबू बक्र (र.) ने यह राय दी कि इन से तावान ले लिया जाये, उमर र. ने इन सबको मार डालने की सलाह दी। रसूल स. ने अबू बक्र की राय को वरीयता दी, अल्लाह ने मार्ग दर्शित किया कि सही और उचित राय उमर र. की राय थी। दूसरा उदाहरण तबूक की लडाई में न चलने की अनुमति चाही तो उनको अनुमति प्रदान कर दी। तो अल्लाह का फरमान ’’अल्लाह ने तुम्हें साफ किया जो तुमने उन को अनुमति दी यहां तक कि तुम्हारे लिये जाहिर हो जाये जिन्होंने सच बोला है। और तुम झूठो को जान लो।‘‘ इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि रसूल के जमाने में कानून साजी (शरीअत साजी) पूर्ण रूपेण अल्लाह पर थी। क्योंकि इसका श्रोत या तो अल्लाह की वहई कुरआन में और या रसूल के इज्तिहाद जो आप की खोज और सूझ-बूझ का परिणाम होता और अल्लाह उस के बारे में कोई वहई या इल्हाम न करता बाकी रखता या उसको निरास्त कर देता।
कोई कसौटी ऐसी नहीं जिसे यह जानकारी हो सके कि रसूल के कौन इज्तिहादी हुक्म इल्हाम द्वारा है और कौन नहीं। हां जिसको अल्लाह ने निरस्त कर के सही बता दिया तो उसका पता है कि वह इल्हाम द्वारा है। और जो कुछ संक्षेप में रसूल ने कुरआन के द्वारा बयान कर दिया मालूम हुआ कि अल्लाह की तरफ से है।