(तीसरी किश्त)
रसूल के समय में शरई कानून साजी के एकदामात
कानून साजी के एकदामात से तात्पर्य है ऐसा मार्ग जिस पर लोग चलें। शरीयत को कानून साजी शरई श्रोत की तरफ और मवादीआम जिस पर लोग रक्षा कर सकें। यह अवधि बनाने की थी, कानून साजी की बुनियाद यही शरई कानून साजी के एक्दामात हैं।
वह मार्ग जिस पर रसूल को चलना था वह शरई श्रोत था जब कोई कानून की आवश्यकता पडती तो रसूल वहई का इन्तिजार करते जो एक आयत कई आयतें कुरआन द्वारा आ जाती। नहीं तो समझ जाते कि अपने इज्तिहाद से कानून इस्लाही मार्ग दर्शित करता। व्यापक बुनियाद उसूल जिस पर इस्लामी कानून साजी की बुनियाद है वह जाहिरी तौर पर चार हैं।
प्रथम ः कानून साजी की गति धीमें-धीमेंः-
यह धीरे-धीरे की प्रक्रिया शरीयत साजी के जमाने से थी जो अहकाम रसूल द्वारा आरंभ हुआ एक बार एक ही कानून से पारित नहीं हुआ बल्कि धीरे-धीरे अलग-अलग बाइस वर्ष और कुछ महीनों में जैसे आवश्यकता होती, जारी होता हर आदेश का एक इतिहास और विशेष कारण होता। शरई कानून साजी के लिये। रूक- रूक कर के कई अवधि में उतारने से यह लाभ था कि कानून के हुक्म तथा उसका तात्पर्य भली-भांति मालूम हो जाता। सरलता से मालूम हो जाता कि शरई कानून साजी की गरज क्या है। मुसलमानों को इस्लाम के प्रथम चरण में ही बाध्य नहीं किया गया। जिस का उनके ऊपर भारी पडता और न ही किसी कार्य के छोडने पर एक बारगी कानून लादा गया। बल्कि धीरे-धीरे सरलता से लागू किया गया। ताकि वह इसके योग्य हो जायें। उनमें कार्य पालन की क्षमता बढे और चेतना की शक्ति उभरे। नमाज को ही लीजिए प्रथम चरण में ही पांच समय की नमाज फर्ज (अनिवार्य) नहीं की गयी, बल्कि केवल नमाज पढने को कहा गया सुबह और शाम में। इसमें न तो किसी संख्या का उल्लेख, न रकअतों की तादाद थी। केवल नमाज पढने का आदेश हुआ। इस प्रकार रोजा, जकात भी हिजरत के बाद फर्ज हुआ। शराब, जुआ, ब्याज इस के अतिरिक्त मामलात थे जो इस्लाम से पहले वह (अरब वाले) करते थे। हराम (निषेध) नहीं किया गया। लेकिन मदीना में आने के बाद इसे रोक दिया गया। एहकाम के धीरे-धीरे रूक कर उबरने में एक हिकमत और थी वह यह कि इसके आत्मा की इस्लाह का इलाज भी करता था (केवल कानून ही बनाना न था) जो कुछ इंसान को सौंपा जा रहा था और उसका पाबंद बनाया जा रहा था उसका पालन करना। बगैर किसी हिचकिचाहट के जरूरी था और यह किसी दावत अर्थात नेकी के कार्य की ओर बुलाने का अच्छा अन्दाज है।
द्वितीयः कानून निर्मित करने की कम से कम प्रक्रिया ः-
अल्लाह और रसूल ने वही कानून जारी किया जितना अनिवार्य और हालात का तकाजा था फर्जी और संभावित मसायल के हल में दार्शनिक शैली नहीं अपनाया। कुरआन और सुन्नत से भी यह स्पष्ट होता है कि प्रश्न और सवाल से मना किया गया है। अल्लाह का फरमान हे ’’ऐ लोगों जो ईमान ला चुके हो ऐसी चीजों के बारे में प्रश्न न करो कि अगर तुम सवाल करो जिस समय कुरआन उतर रहा है। तुम्हारे लिये बदल दे। (कुरआन) अल्लाह के रसूल स. ने भी कील वकाल से तथा ढेर सारे प्रश्न करने और धन के बर्बाद करने से रोका है। और आप का यह भी कथन है। मुसलमानों में सबसे बडा मुसलमान पापी वह है जिस ने ऐसी चीज के बारे में सवाल और कुरेद किया कि इसके कारण से वह हलाल (जायज) चीज हराम हो गयी। और यह भी कहा ’’ निःसंदेह अल्लाह ने चंद फरायज को (अनिवार्य) कर दिया है। पर तुम उसको व्यर्थ न करो और कुछ प्रतिबंध लगा दिया है तो तुम उसके आगे न बढो और कुछ चीजों को हराम करार दिया है तो तुम उसका विरोध न करो और कुछ चीजों के बारे में चुप है तुम पर दया है यह भूल चूक नहीं है तुम उसकी खोज न करो। (हदीस)
इस प्रकार कानून साजी का तात्पर्य है समाज की समस्या और उस के हितों की रक्षा। शरई कानून साजी की अवधारणा यह है कि आम लोगों की समस्याओं का समाधान तथा उनकी मसलेहतों और हितों को बाकी रखना। यह बात उचित है कि मौलिक कानून इतने कम हो कि हर जमाने में उनकी आवश्यकताएं पूरी हो। इनके पीछे आने वालों को किसी प्रकार की कठिनाईयों का सामना न करना पडे। जो उनकी समस्याओं को समाधान करने में सक्षम न हो। इस्लामी शरीअत की कानूनी थ्यौरी यह है कि हर चीज की असलियत (वास्तविकता) वैध जायज होना है। जब किसी चीज के बारे में कोई शरई हुक्म नहीं है अथवा कोई तर्क नहीं है तो वह जायज है।