(59 वीं किश्त)
मोतसिम बिल्लाह
अबु इस्हाक मोतसिम बिन हारून रशीद सन 180 हिजरी में पैदा हुआ था। हारून रशीद इससे बहुत मोहब्बत करता था। मोतसिम बहुत बहादुर और पहलवान था, वह फौज को अच्छी तरह कमाण्ड कर लिया करता था। मोतसिम बिल्लाह की खिलाफत बैअत मामून के इंतकाल के दूसरे दिन 19 रजब सन 219 हिजरी को तरतूम नामक जगह पर हुई। मोतसिम के वजीरे आजम का नाम फज्ल बिन मरवान था।
मोतसिम बिल्लाह ने आठ साल आठ महीने खिलाफत की। उसने 48 साल की उम्र पाई। वह अब्बासी खिलाफत का आठवां खलीफा था और उसके आठ लड़के और आठ लड़कियां थीं।
वासिक बिल्लाह
वािसक बिल्लाह बिन मोतसिम बिल्लाह बिन हारून रशीद की उर्फियत अबु जाफर या अबुल कासिम थी। उसका असल नाम हारून था। यह 20 शव्वाल सन 196 हिजरी में पैदा हुआ। इसको इसके बाप मोतसिम बिल्लाह ने वली अहद बनाया था। मोतसिम की वफात के बाद खिलाफत के तख्त पर बैठा। यह बहुत बड़ा शायर और कलाकार था। अपने इसी इल्म व फज्ल से यह मामून से कम न था। इसीलिए इसे मामून सगीर (छोटा मामून) कहते थे।
वासिक बिल्लाह इस्तिरका के मर्ज में मुब्तिला हुआ। उसके पूरे जिस्म पर वरम आ गया था। इलाज के लिए उसे तनूर में बैठाया गया, इससे मर्ज में कुछ कमी महसूस हुई। अगले दिन तनूर को कुछ ज्यादा गर्म किया गया और यह पहले दिन के मुकाबले ज्यादा देर तक तनूर में बैठा रहा, जिसकी वजह से बुखार आ गया। तनूर से निकाल कर जब उसे रखा गया तो उसी वक्त उसकी जान निकल चुकी थी।
वासिक बिल्लाह पांच वर्ष नौ महीने खलीफा रहा और 36 वर्ष चार महीने की उम्र में 14 जिलहिज्जा सन 232 हिजरी को इंतिकाल हुआ।