तारीखे इस्लाम

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(60 वीं किश्त)
मुतवक्किल अलल्लाह
मुतवक्किल अलल्लाह बिन मोतसिम बिल्लाह बिन हारून रशीद का असल नाम जाफर और उर्फियत अबुल फज्ल थी। वह सन 207 हिजरी में पैदा हुआ था। अपने वालिद के इंतिकाल के बाद वह खलीफा बना।
सन 235 हिजरी में आजरबाईजान में बगावत हो गई और इस पर जल्द काबू पा लिया गया। इसी साल खलीफा मुतवक्किल अलल्लाह ने अपने बेटों मुहम्मद, तलहा और इब्राहिम को वली अहदी के लिए लोगों से बैअत ली और यह तय किया गया कि पहले मुहम्मद तख्त व ताज का मालिक होगा, उसके बाद तलहा तख्त पर बैठेगा और फिर इब्राहिम खलीफा बनेगा। मुहम्मद को मुस्तन्सिर और तलहा को मोतज का खिताब दिया गया।
मुतवक्किल अलल्लाह को कुछ तुर्क सरदारों ने जिनसे मुतवक्किल ने जागीरें छीन ली थीं ने साजिश कर उनके एक साथी फत्ह बिन खाकान के साथ कत्ल कर दिया। खलीफा मुतवक्किल अलल्लाह चालीस साल की उम्र में चैदह वर्ष दस महीने तीन दिल खिलाफत करके मक्तूल हुआ।
मुतवक्किल अलल्लाह ने खलीफा बनते ही सुन्नत को जिन्दा करने का बेड़ा उठाया था। सन 234 हिजरी में तमाम माहिरों को राजधानी सामरा में बुलाया और उनकी बड़ी आवभगत की। इससे पहले वासिक और मोतसिम के दौर में हदीस के माहिर एलानिया दर्स नहीं दे सकते थे। मुतवक्किल की इन नीतियों से मुसलमान बहुत खुश थे। उसने कब्रपरस्ती खत्म करा दी।
मूुसतन्सिर बिल्लाह
मूुसतन्सिर बिल्लाह बिन मुतवक्किल अलल्लाह बिन मोतसिम बिल्लाह बिन हारून रशीद का असल नाम मुहम्मद ओर उर्फिैयत अबु जाफर या अब्दुल्लाह थी। सन 223 हिजरी में सामरा नामी जगह पर पैदा हुआ। अपने बाप मुतवक्किल को कत्ल करा कर 4 शव्वाल 247 हिजरी को खलीफा बना। अपने दोनों भाईयों मोतज और मोइद को, जो उसके बाप मुतवक्किल के वली अहद मुकर्रर किये गये थे, वली अहदी से हटाया।
तुर्क दरबारे खिलाफत पर काबू पाए हुए थे और हर दिन उनकी ताकत बढ़ रही थी। मुस्तन्सिर ने अपनी खिलाफत की छोटी सी मुद्दत में भी शियों पर बड़े एहसान किये। हजरत हुसैन रजि. की कब्र पर लोगों को जियारत के लिए जाने की इजाजत दे दी और अलवियों को भी हर किस्म की आजादी दी दी।
7 रबीउल अव्वल सन 248 हिजरी में 6 महीने से भी कम खिलाफत कर फौत हुआ। मरते वक्त कहता था कि ऐ मेरी मां, मुझसे दीन और दुनिया दोनों जाते रहै। मैं अपने बाप की मौत की वजह बना हूं और अब मैं उनके पीछे जाता हूं।
मुस्तईन बिल्लाह
मुस्तईन बिल्लाह बिन मोतसिम बिल्लाह बिन हारून रशीद का असल नाम अहमद और उर्फियत अबुल अब्बास थी। ख्ूाबसूरत गोरे रंग का आदमी था। सन 221 हिजरी में पैदा हुआ था। जब मुस्तन्सिर की वफात हो गई तो सरदार जमा हुए कि किसको खलीफा बनाया जाए। मुतवक्किल के बेटे मोतज और मोइद मौजूद थे, लेकिन उनको तुर्कों की तरफ से खतरा था और तुर्कों ने ही उनको वलीअहदी से हटवाया था। इसलिए मोतसिम बिल्लाह के बेटे अहमद को तख्त पर बैठाया गया। वह 6 रबीउल अव्वल 248 हिजरी को तख्त पर बैठा।
मुस्तईन के दौर में तुर्कों और खुरासानियों की आपसी रस्साकशी ने मुस्तईन बिल्लाह की पोजीशन को कमजोर कर दिया था। तुर्कों ने मोतज को अपना खलीफा चुन लिया, मुस्तईन और मोतज की फौजों के बीच जबरदस्त लड़ाई हुई। इसके बाद मुस्तईन ने मोतज की खिलाफत कुबूल कर ली और उसको गिरफ्तार कर लिया गया। 3 शव्वाल 252 हिजरी को खलीफा मोतज के इशारे से कत्ल कर दिया गया।
मोतज बिल्लाह
मोतज बिल्लाह मुतवक्किल बिन अलल्लाह बिन मोतसिम बिल्लाह बिन हारून रशीद सन 232 हिजरी में सामरा में पैदा हुआ। मुर्हरम 251 हिजरी में खलीफा बनाया गया। मोतज जब खलीफा बना उसकी उम्र 19 साल की थी। मोतज को चूंकि तुर्कों ने खलीफा बनाया था इसलिए वह तुर्कों से घिरा रहा और उस पर उन्हीं का हुक्म चलता रहा। रजब के महीने में सन 252 हिजरी में खलीफा ने अपने भाई मोइद को वली अहदी से हटा दिया और जेलखाने भेज कर कत्ल करा दिया।
चूंकि खलीफा का रौब अब उठ चुका था, इसलिए जगह-जगह सूबेदारों ने अपने आपको खुदमुख्तार समझना शुरू कर दिया और खारजियों और अलवियों ने बगावत शुरू कर दी। तुर्कों के एक सरदार सालेह बिन वसीफ ने मोतज को महल में घुस कर घसीटते हुए बाहर निकाला और इसकी बहुत बेइज्जती की। उसके बाद उससे कहा गया कि खिलाफत छोड़ दो तो उसने मना कर दिया।
इसके बाद सरदारों और दरबारियों ने मिलकर एक तहरीर तैयार की और उसने उस पर दस्तखत कर मोतज को खिलाफत से हटा दिया और उसे एक तहखाने में बंद कर दिया गया, जहां उसका दम निकल गया। सन 25 हिजरी में रजब के महीने में मोतज की वफात हुई।