(61 वीं किश्त)
मुहतदी बिल्लाह
मुहतदी बिल्लाह बिन वासिक बिल्लाह बिन मोतसिम बिल्लाह बिन हारून रशीद का असल नाम मुहम्मद और उर्फियत अबु इस्हाक थी। 218 हिजरी में पैदा हुआ 37 साल की उम्र में 29 रजब सन 255 हिजरी में तख्त पर बैठा; अल्लाह के हुक्मों को रिवाज देने में बड़ी कोशिश करता था। उसने बहुत खराब दौर पाया कि खिलाफते इस्लामिया की इज्जत व विकार को दोबारा वापस लाना बहुत कठिन था।
एक बार फिर तुर्कों ने बगावत करते हुए खलीफा को कत्ल डाला। यह हादसा 14 रजब 256 हिजरी को हुआ। खलीफा मुहतदी बिल्लाह ने पन्द्रह दिन कम एक साल खिलाफत की और 38 साल की उम्र में कत्ल किया गया। इसके बाद तुर्कों ने अबुल अब्बास अहमद बिन मुतवक्किल को तख्त पर बैठाया, उसके हाथ पर बैअत की और मोतमद अलल्लाह का लकब तजवीज किया।
मोतमद अलल्लाह
मोतमद अलल्लाह बिन मुतवक्किल अलल्लाह बिन मोतसिम बिल्लाह बिन हारून रशीद सन 229 हिजरी में पैदा हुआ। 261 हिजरी में शव्वाल के महीने में खलीफा मोतमद अलल्लाह ने एक दरबारे आम किया और दरबार में तमाम मेंबरों के सामने इस बाम का ऐलान किया कि मेरे बाद मेरा बेटा जाफर वली अहद है; लेकिन अगर मेरी वफात तक जाफर बालिग न हो तो फिर मेरा भाई अहमद मूफिक खिलाफत का हकदार होगा, उसके बाद जाफर खिलाफत का हकदार समझा जाएगा।
खलीफा मोतमद अलल्लाह नाम का खलीफा रह गया था, उसका भाई मूफिक अपनी बहादुरी और अक्लमंदी की वजह से हुकूमत की तमाम बातों पर हावी और काबिज हो गया था। मुफिक ने तुर्क सरदारों पर भी नकेंल डाली और उनका जोर तोड़ दिया।
मूफिक एक मुहिम के बाद जब फारस और अस्फहान से बगदाद वापस आया तो बीमार हो गया और 22 सफर सन 278 हिजरी में फौत होकर रसाफा में दफन हुआ। मूफिक के बाद दराबारियों के दबाव में अबुल अब्बास मोतजिद को मुफिक की जगह वली अहद बनवाया। मोतजिद चूकि खूब तर्जुबेकार और बहादुर शख्स था इसलिए वह हुकूमत के तमाम मामलों पर हावी हो गया और खलीफा मोतमद फिर एक कठपुतली खलीफा बन कर रह गया।
खलीफा मोतमद अलल्लाह बिन मुतवक्किल अलल्जाह ने 20 रजब सन 279 हिजरी में वफात पाई। मुसामरा में दफन किया गया। मोतमद के जमाने में हुकूमत ओैर सूबों की ताकतें बिलकुल कमजोर हो चुकी थी। सरदारों में फूट, दुश्मनी और एक दूसरे की मुखालफत खूब जोरों पर थी, लोगों के दिलों से खलीफा का रौब बिलकुल मिट चुका था। इसी जमाने में हदीस के मशहूर नामी इमामों जैसे इमाम बुखारी, इमाम मुस्लिम, अबु दाऊद, तिर्मिजी और इब्ने माजा ने वफात पाई।
अब्बासी खिलाफत की हुकूमत व खिलाफत को अब तक डेढ़ सौ बरस बीत चुके थे। इस खिलाफत की शान व शौकत और तरक्की का जमाना पूरे एक सौ साल तक रहा और मोतसिम बिल्लाह की वफात यानी 277 हिजरी से गिरावट शुरू हो गई।मोतजिद बिल्लाह
मोतजिद बिल्लाह बिन मूफिक बिल्लाह बिन मुतवक्किल अलल्लाह बिन मोतसिम बिल्लाह बिन हारून रशीद का असल नाम अहमद और उर्फियत अबुल अब्बास थी। रबीउल अव्वल 243 हिजरी में पैदा हुआ और अपने चचा मोतमिद बिल्लाह के बाद रजब सन 279 हिजरी में तख्त पर बैठा। खूबसूरत, बहादुर और अक्लमंद था, अगर जरूरत होती तो सख्ती से काम लेने और खून बहाने में भी न झिझकता;
सन 289 हिजरी में खलीफा मोतजिद बिल्लाह औरतों से ज्यादा सोहबत करने की वजह से बीमार हो गया और बहुत से मरजों ने उसे घेर लिया। एन 289 हिजरी के आखिर में उसकी वफात हुई।
मुक्तफी बिल्लाह
मुक्तफी बिल्लाह बिन मोतजिद बिल्लाह बिन मुतवक्किल अलल्लाह बिन हारून रशीद का असल नाम अली और उर्फियत अबु मुहम्मद थी। मुक्तफी इंसाफ पसंद, खुशदिल और खूबसूरत आदमी था।
माह जुमादल ऊला में साढ़े छह वर्ष हुकूमत कर के मुक्तफी बिल्लाह बगदाद में फौत होकर मुहम्मद बिन ताहिर के मकान में दफन हुआ। वफात से पहले अपने भाई जाफर को वली अहद बनाया था। जाफर बिन मोतजिद की उम्र उस वक्त तरेह बरस की थी। उसने तख्त पर बैठ कर अपना लकब मुक्तदिर बिल्लाह तज्वीज किया।
मुक्तदिर बिल्लाह
मुक्तदिर बिल्लाह बिन मोतजिद बिल्लाह का असल नाम जाफर और उर्फियत अबुज फजल थी, 282 हिजरी में पैदा हुआ था। सन 301 हिजरी में मुक्तदिर बिल्लाह ने अपने चार साला बेटे अबुल अब्बास को जो काहिर बिल्लाह के नाम से तख्त पर बैठा, अपनी वली अहद बनाया।
इसके एक सिपहसालार मूनिस खादिम ने 320 हिजरी में मूसल पर कब्जा कर लिया। मूनिस खादिम के जोड़-तोड़ और साजिशों से बगदाद, शाम और मिस्र की फौजें भी मूनिस के पास चली आईं। पूरी तैयारी के बाद बगदाद पर चढ़ाई कर दी गई।
लड़ाई शुरू हुई। मुक्तदिर बिल्लाह महल से निकल कर एक टीले पर खड़ा था और फौज आगे लड़ रही थी। बगदाद वाले हार गये। दुश्मन के तीर से मुक्तदी बिल्लाह घायल हुआ, घोड़े से गिरा ओर मर गया। यह वाकिआ 29 शव्वाल सन 320 हिजरी में हुआ। मूनिस ने अबु मंसूर मुहम्मद बिन मोतजिद को तख्त पर बैठा कर काहिर बिल्लाह के लकब से मशहूर किया।
काहिर बिल्लाह
काहिर बिल्लाह बिन मोतजिद बिल्लाह बिन मूफिक बिल्लाह बिन मुतवक्किल का नाम मुहम्मद और उर्फियत अबु मंसूर थी। लगभग डेढ़ साल हुकूमत करने के बाद 6 जुमादस्सानी सन 322 हिजरी मेुं बलवाईयों ने काहिर को गिरफ्तार कर लिया और अबुल अब्बास मुहम्मद मुक्तदिर को तख्त पर बैठा कर राजी बिल्लाह के लकब से मशहूर कर दिया। राजी बिल्लाह ने तख्त पर बैठते ही काहिर को अंधा कर दिया।
राजी बिल्लाह
राजी बिल्लाह बिन मुक्तदिर बिल्लाह का नाम मुहम्मद और उर्फियत अबुल अब्बास थी। सन 297 हिजरी में पैदा हुआ और काहिर के हटाए जाने के बााद जुमादस्सानी सन 322 हिजरी में तख्त पर बैठाया गया। यह जेलखाने से लाकर तख्त पर बैठाया गया था। इसने अली बिन मुकला को वजीरे आजम बनाया।
खलीफा राजी बिल्लाह की हुकूमत बगदाद और उसके आसपास के इलाकों के अलावा कहीं ओर नह थी, ने किसी सूबे से टेक्स आता था। हर जगह आजाद हुकूमतें कायम होे गईं, जिन लोगों ने टेक्स देने का वादा किया था, वह भी अपने वादों को पूरा करना जरूरी नहीं समझते थे।
बसरा पर मुहम्मद बिन राइक का कब्जा था। खोजिस्तान और अहवाज पर अबु अब्दुल्लाह बुरैदी का कब्जा था। फारस की हुकूमत अली बिन बोया (जो इमादुद्दौला के नाम से प्रसिद्ध हुआ) के कब्जे में था। किरमान में अबु अली मुहम्मद बिन इल्यिास हाकिम थे। रे, असफहान और जबल के सूबों में हसन बिन बोया और दशमगीर एक दूसरे के खिलाफ लड़ाई में लगे हुए थे। मूसल, दयारे बक्र, दयारे मिस्र, दयारे राबिआ बनी हमदान के कब्जे में थे। मिस्र व शाम पर मुहम्मद बिन तफ्ज का कब्जा था। तब्रस्तान के सूबे पर वैलमी सरदार काबिज व हाकिम थे। उन्दुलुस व मराकश व अफ्रीका में तो पहले से ही आजाद हुकूमतें थीं।
माह रबीउलअव्वल 329 हिजरी में कुछ महीने कम सात साल तख्त पर कर खलीफा राजी बिल्लाह ने वफात पाई।