मख्दूम मोहिउद्दीन

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मख्दूम मुहीउद्दीन की गिनती प्रथम पंक्ति के प्रगतिशील शायरों में की जाती है। वो तीन फरवरी 1908 को मैदक में पैदा हुए। 1937 में उन्होंने उस्मानी यूनिवर्सिटी से एम.ए. किया। 1939 में गांधी जी के सत्याग्रह पर अपनी नज्म ’’मुसाफिर‘‘ लिखी। इसी वर्ष सिटी काॅलेज में उर्दू के शिक्षक नियुक्त हुये। लेकिन 1941 में नौकरी से इस्तीफा दे दिया और कम्यूनिस्ट पार्टी के सक्रीय कार्यकर्ता बन गये। 1944 में पहला काव्य संकलन ’’सुर्ख सबेरा‘‘ प्रकाशित हुआ। दूसरा संकलन ’’गुले तर‘‘ भी हैदराबाद से प्रकाशित हुआ। उनका संग्रह ’’बिसाते रक्स के नाम से 1966 में हैदराबद से प्रकाशित हुआ। कई बार जेल गये। 1956 में आंध््राा लेजिस लेटिव कौंसिल के सदस्य नियुक्ति हुये। 25 अगस्त 1969 को दिल्ली में थे कि दिमाग की नस फट जाने से इंतकाल हुआ। उनकी मृत्यु के पश्चात उनके संकलन बिसाते रक्स पर साहित्य अकादमी एवार्ड दिया गया।
मख्दूम मुहीउद्दीन बुनियादी तौर पर सियासी आदमी थे उनकी सियासी नजरें जल्सों और जुलूसों में गाई जातीं थीं। इस दौर के बहुत से दूसरे शायरों की तरह उनकी शायरी भी इंकलाब रूमानियत का खूबसूरत संगम पेश करती हैं। मख्दूम मुहीउद्दीन ने कम लिखा, लेकिन जितना लिखा अच्छा लिखा। इनके पहलू में एक सच्चे शायर का दिल धडकता था यही वजह है कि इनकी कुछ नज्में शायरी के आलातरीन तकाजों को पूरा करती हैं और बेमिसाल हैं।
मख्दूम मोहिउद्दीन की रचनाएं
इंतिसाब1
हमको बेमायगी-ए-जब्त2 दिखाना ही पडा
दिल की बातों को तेरे सामने लाना ही पडा।
मैं जो खलवते में3 भी डरता था सुनाने के लिए,
सरे-बाजार4 वही गीत सुनाना पडा।
खेंच लाया तुझे पर्दे से मेरा जौके-नियाज
मेरे पर्दे में तुझे जलवा दिखाना ही पडा।
थरथराते हाथों से, धडकते दिल से,
तेरे रूख से5 तेरे आंचल को हटाना ही पडा।
शब्दार्थः- 1. सम्बंध, 2. सहनशीलता की कमी, 3. एकांत में, 4. बीच बाजार में, 5.चेहरे से।
चारागर
इक चंबेली के मंडवे तले
मैक दे से जरा दूर उस मोड पर
दो बदन
प्यार की आग में जल गये
प्यार हर्फे-वफा
प्यार उनका खुदा
प्यार उनकी चिता,
दो बदन
ओस में भीगते, चांदनी में नहाते हुए
जैसे दो ताजा रौ, ताजा दम फूल, पिछले पहर
ठंडी-ठंडी सुबक-रौ1 चमन की हवा
सर्फे मातम2 हुयी
काली-काली लटों से लिपट, गर्म रूखसार पर
एक पल के लिए रूक गई
हमने देखा उन्हें
दिन में और रात में
नूरो-जुल्मात3 में
मस्जिदों कि कनारों ने देखा उन्हें
मन्दिरों के किवाडों ने देखा उन्हें
मैकदे की दरारों ने देखा उन्हें
अज अजल4 ता अबद5
ये बता चारागर
तेरी जंबील6 में
नुस्खा-ए-कीमिया-ए-मुहब्बत7 भी है?
कुछ इलाज-ओ-मुदावा-ए-उलफत8 भी है?
इक चंबेली के मंडवे तले
दो बदन
प्यार की आग में जल गए
चारागर!
शब्दार्थः- 1.मंद गति से चलने वाली, 2. शोक में बीती, 3. प्रकाश और अंधकार, 4. आदि से, 5. अन्त तक, 6. झील, 7.प्रेम को सोना जैसा सच्चा बनाने वाला, 8. प्रेम का इलाज।